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________________ खण्ड सुवर्ण * कुष्टि जी थाय । दोनु भवे संकट लहे ॥ इम सुणी कम्पो हो । दो भव दुःखथी हो || भ्रात दया लावो हो जो निज हित चहे ॥१३ ॥ जो कोह देवे हो । दान सुवर्ण सुमेर । पृथवी भरीने हेम थी। कोह छुडावे हो। मरतो एकही प्राण दयाके ते तुल्ये * नधी ॥ १४ ॥ जिम निज आत्मज हो। सदा जीवणो चहाय ॥ तिमहीज जाणो सहू प्राणिया ॥ जो पोतापे हो । कधी संकट आय ॥ तो धवरावे तिम सहू जाणिया ॥ १५ ॥ | कोहक सहायक हो । होह संकट बचाय ॥ किसो गिणो हो तुम ते भणी ॥ इम | अंतरमें हो पेखो ज्ञानकी दृष्टि ॥ ए अवसरे आह अणी ॥ १६ ॥ सुणी उपदेशज हो ॥ चमक्यो चित कोटवाल ॥ दीन दयाल धन्य आपने ॥ भलो बचायो हो । अनर्थथी मुज आज ॥ मरम जाण्योंजी धर्म पापनो ॥ १७ ॥ जाणी जोइ हो । नहीं करूं मोटो अकाज ॥ धर्म बान्धव मदन माहेरो ॥ आप पसाये हो । दीथो अभय एठाय ॥ उपकार मानां दोनूं थायरो॥१८॥ हिवे नहीं करस्यूं हो। कोह पचेंन्द्रीकांघात | ए प्रतिज्ञा | मुजने खरी ॥ आज थी आपने हो ॥ मान्या में गुरु देव । धर्म दयामें देव जिनवरा ॥18 E| १९ ॥ मदनजी लीधा हो । ते वेला पच्चखाण । पर नारीने जाणूं बेनडी ॥ तस मात तातज हो । खुशी थी मुजने परणाय ॥ तेहीज मुज प्रिया धरा ॥ २० ॥ दोनों प्रतिज्ञा हो ॥ लीनी इम उत्सहाय । वंदणा करी दोन भावस्यूं ॥ मदन पसाये हो । समकिती
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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