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________________ स्वण्ड |३१॥ श्वामी जी कहूं हूं प्रभु साक्षे ॥ मैं नहीं लियो नाक उतार ॥ च ॥ ३२॥ विना गुन्हे मैं मार्यो जावू । कीजे म्हारी बहार ॥ च ॥ ३३ ॥ ढाल तीसरी चौथा र खन्डकी । अमोल करी उच्चार ॥ च ॥ ३४ ॥ * ॥ दोहा ॥ महारी वीती* वारता । दीधी श्वामी सुणाय ॥ जगदाधार जोगीश्वरा । सोचो न्याय अन्याय ॥१॥ * छोडावो ए कष्टथी । थास्ये बहु उपकार ॥ धर्मी धर्म रक्षा करो । एहिज आप आचार २॥ सुणवाणी आगंदकी । चिंते मदन ते वार ॥ राते जोइ मशाणमें । तेहीज नकटी नार ॥ ३ ॥ एक यह सज्जन माहेरो । दूजो छे सतवंत ॥ तीजो धर्म ए उगरे । चोथो होय साहावंत ॥ ४ ॥ छोडायूं हूं इम भणी । देखाइ चमत्कार ॥ अभय दियो वंदी भणी । ते हा ते वार ॥५॥ ॥ ढाल ४ थी। राजग्रही तो नगरी जी ॥ यह ॥ मदन तदा सुरा थाइ । जोगीनी आज्ञा पाइ । कांइ फरमाइ । अहो सुणियों तुम सुभटो जी । इण नर नाही गुन्हों कीनो । राजा खोटो दंड दीनो । हम मन चीनो । सहू दूरा यहां थी हटोजी ॥ १॥ सुभट तब माने नाहीं। छोडे नहीं अंगजताइ । रिसज आइ । कहे तुम बिच नहीं आईये जी ॥ जिणरो निमक हमने खायो.। तिण ए हुकुम फरमायो। हम उठायो । ते खोटो नहीं थाषहजी ॥ २ ॥ नहीं हम मूका त्रिकाले । तुम क्यों में पड्या इणरे चाळे । किस्यो भालें । हट जावो इहां थकीजी ॥ मदन बहू पर समजावे ।
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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