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झाड खाड वावीमें जाइ॥ ऊंच नीच सह स्थानक निरखे। तो भी लगडा नहीं पाई॥
खण्ड ३ रतीसुन्दरी पड पाणीमें । ढूंढ लिवी वावी सारी । थर २ धूजत्ती वाहिर निकली।
किहां गई बाइ मुज सांडी ॥ अन्य कोइ आणें नहीं पावे । केतो गइ हवा में उडी ॥ हो ||॥ १०॥ सब कहे जाणे दो साडी॥ बहत आपणे घर मांहीं । क्यों निकम्मी मेह
करती । रखे शरदी लगसी बाइ॥ देवालयमें वस्त्र आपणे । सो पहेरी घरको चलिये ।। रखे अब्बी दिन ऊगी जासी । लडे पती उनसे डरिये ॥ आइ सह देवाकय पासे । जडे
पट पर दृष्टी पडी॥ हो ॥ ११॥ अहो किंवाड किसने यह लगाये। कोण यह कैसे आया। ३६ क्यों छिपा ये मन्दिर अन्दर । ए साडी का चोर पाया ॥ बोल कोण है दान व मानव
| क्यों तेने फंद मचाया ॥ जाणता नहीं है शक्ति हमारी । क्यों तेने मृत्यूंचाया। रिस र भराइ बोले धाइ । जैसी भाद्रपदकी पडे झडी ॥ हो ॥ १२ ॥ मदन कछु उत्तर नहीं आपे । # तबते मन में शरमांइ ॥ इसकी हिम्मत हद है बाइ । गुप्त रहा यह इहां आइ ॥ निडर .
होकर नाटक देखा । जो देवतकोना पाइ ॥ बोलाया बोले न जरा भर । क्या है इसके मन र मांड ॥ रखे लेणासे देणा होवे । ले जावे अपणी गठडी ॥ हो ॥ १३ ॥ अहो बान्धव दो वस्त्र हमारे । ठन्डथकी रही है कॉपी ॥ कहो तुम्हारे मनमें होय सो । अभय बचन दीना आपी ॥ मुफतमें तुम नाटक देखा । तोभी नियत नहीं धापी ॥ चोर बने हमारे सचे