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________________ तुम इहां रहजो सुख नाही । सुज मन आगे धावे ॥ पुण्य ॥५॥ मंजरी हर्ष कहे भले चालो । मुज मन एही चावे । सासू सुसरा कुटम्बने मिलस्युं । मदन पुनः दावे ॥ पुण्य । ६॥ ठाम ठिकाणो खबर नहीं मुज । अब्बी किहां ते रहावे ॥ छोड आयो हूं |विंदेश मांइ । तास पतो जव पावे ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ ठाम ठिकाणो सहू जम्या थी । मुज | मन ठामे आवे ॥ फिर लेजास्यूं तुमने आइ । इम तस चित स्थिर ठावे ॥ पुण्य ॥८॥ | भूपतिने विचार जणायों । खिन्न हो ते फरमावे ॥ तुम दर्शने हम परसन्न होवां । जावो | किम कहवावे ।। पुण्य ॥ ९॥ मदन कहे मात तात मिलणने ! मुज मन अति उमाये ॥ पाछो आस्युं आप सेवामें । कृपा रखियो भावे ॥ पुण्य ॥ १० ॥ नृप कहे शैन्य लेजावो । जे तुम साथे चहावे ॥ अदन कहे जो कृपा आपकी । कांइक फो जलरावे ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ तीनी दल तय किया ए कंठा । प्रयाण मदन करावे ॥ राजा सामंत प्रजा दी मिली । सीम में लगे पहोंचावे ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ दर्शन वेगा दीजो इम कही । लुल २ सीस नमावे ॥ मदन खुशी होनम्या घणेरा । सह फिर ठामे आवे ॥ पुण्य ॥१३ ॥ सुखे मुकाम करता मदनजी । वटपुर डिंग आ रहावे । दल प्रबल पसर्यो चउदिशमें । खबर ग्राममें जावे ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ सुण राजाजी मन संकाणा । कुण पर चक्री ए आवे ॥ वैर नहीं अपणो किण साथे । अचिंत किम प्रगटावे ॥ पुण्य ॥ १५॥ कहे सचिव से जावो वेगा । करो
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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