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म.श्रे.
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अपराध क्षमाय हो | म ॥ पुण्य ॥ २८ ॥ राय विषक्षण समजियारे । देव दियो मदन ने राज हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ २९ ॥ युक्ती करी राखी लहूंरे । यश प्रेम सूखने लाज हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३० ॥ तिणही हगामां मांयनेरे। करी जग विवहार हो । म ॥ पुण्य ॥ ३१ ॥ कनकावती परणा दीवीरे । मदन भणी तेवार हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३२ ॥ दायचा मांय अपियोरे । आनंदपुरको राज हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३३ ॥ और यथा उचित कियारे । करणो जो थो काज हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३४ ॥ फिर वैराग्य मन आणनेरे । मिलाइ स्थविर संयोग हो । म ॥ पुण्य ॥ ३५ ॥ दीक्षाली जिनराजकीरे । तोडवा कर्मका भोग हो | म ॥ पुण्य ॥ ३६ ॥ ज्ञान भणी करणी करीरे । तप जप क्षप कर संत हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३७ ॥ आयु अंते श्वर्गे गयारे । करसी भवको अंत हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३८ ॥ मदन जी पाले राज ने हो । करे प्रजाको पोष हो | म ॥ पुण्य ॥ ३९ ॥ अमरी पडह | बजावियोरे ॥ सहूने दियो संतोष हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ४० ॥ मठ बन्धायो मनोहररे । रह जोगी तिण मांय हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ४१ ॥ सेवा सादे नित्य मदनजीरे । कहे सो हुकम उठाय हो | पुण्य ॥ ४२ ॥ प्रधान किया अंगज भणीरे । करे सहू की संभाल हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ४३ ॥ इछित खरच राजपुत्रनेरे || देह गुजारे सुखे काल हो | म || पुण्य ॥ ४४ ॥ वस्ती आवद हुई सहरे । अलकापुरीसम वास हो | म
म ॥
खण्ड ५
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