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________________ म. श्रे. खण्ड ४५ पाले बाराव्रत ॥ भगवंत भाख्यो निज मुखेजी । जोवो पशुना कृत ॥ म ॥१२॥ पाल इत्यादी पस्यू तणाजी । द्रष्टांत वहु जग मांय । निज मुखथी निज कीर्ते जी करतां लज्जा आय ॥ म ॥ १३ ॥ कहो पहली थारी बीतीजी । किम थयो एह श्वरूप ॥ मैं * जाणूंसो बतावस्यूं जी ॥ जे उपाय तद्रूप ।। म ॥ १४ ॥ मैं कह्यो पुर पयाठणकोजी । मैं छु क्षत्री पूत ॥ रायकन्याको हरण करीने । लायो ए अवधूत ॥म ॥ १५॥ तस लेवण आवियाजी । मार्ग सही बहुकष्ट ॥ इहां फंद फस्यो जोगीनेजी । ए निर्दय छे धृष्ट ॥ म ॥ १६ ॥ तेषापी मुजने को जी । नरथी पशु अवतार ॥ लेणाथी देणो पड्यो । अब | दुःख पावू छु अपार ॥ म ॥ १७ ॥ मुज बीतक तुमने कह्यो। अब दानो कोइ उपाय ॥ में किम पाछो नरपद लहूं । वली कुँवरी हाथे आय ॥ म ॥ १८ ॥ उपायतो हूं जाणूं छु। पण तुमथी ते नहीं थाय ॥ दूजो सूरो जो मिलेतो । जोगीनो जोम गमाय । म ॥१९॥ ए जोगीना धुर थकीहूं । नाणू छं सह कर्म ॥ करामाती जो मिले तो । खोले सगला भर्म शाम ॥ २० ॥ इम कही चुपको रह्योजी । ढाल पंचमी माय ॥ तीजा खन्ड की कही में अमोलख । शुक उपाय बताय ॥ म ॥ २१ ॥ 8 ॥ दोहा ॥ कृत्रिम शुक कहे मदनसे । ६ मैं तस कह्यो नरमाय ॥ इम निरास नहीं काजिये । बान्ध आस पास माय ॥१॥ में पाछलथी आवे अछे । मंत्नीश्वर सुजाण । बुद्ध वल कला कौशल्यका । मदन जरी
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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