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________________ | हूं जावूं फिरवा काज ॥ गिरी तरु वन जोवतो । मुज मन रखूं विलमाज ॥ म ॥ १ ॥ एक दिन ह्यांची पूर्वमें जी । वटदुम मोटो निहाल || विश्रांती लोधी तिहां । तिहां शुक टोलो आयो चाल ॥ म ॥ २ ॥ बैठा जुदी २ डालियेजी । सब पक्षी सिरदार || टुकलगा, मुज देखतोजी । मेखोन्मेख निरधार । म ॥ ३ ॥ वैम पड्यो तेहनें मने ॥ ते उड आयो मुज पास ॥ कुण किहांना रहवासिया । इम पूछे ते विभास ॥ म ॥ ४ ॥ मैं कह्यो तुम पूंछो किस्यों जी । तुमने कह्या स्यूं थाय । तुम हम तो सरीखा मिल्याजी बोल्यो व्यर्था जाय ॥ म ॥ ५ ॥ विस्मय हुयो ते इम सुणी जी । वली पूछे इण पेर ॥ तुम सागे तोता नहीं जी । छे कोई दुःख की खेहर ॥ म ॥ ६ ॥ मैं चमक्यो मनने विषेजी । ए छे चतुर सुजाज ॥ बोली में मतलब लख्यो जी। हा हा ! पशु विन्नण | म ॥ ७ ॥ मैं कह्यो तुम केवो जिकीजी । साची छे सह बात || पण दुःख जेहने कीजियेजी। जेहथी दुःख विरलात ॥ म ॥ ८ ॥ शुक कहे तुम किम जाणियोजी । मैं न करूं दुःख दूर || पक्षी सरीखा जगतमें जी । कुण नर लायक पूर ॥ म ॥ ९ ॥ वीर मती शुकने कहेजी । पामी बहुली रिद्ध ॥ कुसुम श्री श्रुक जोगधीजी । सील राख्यो भलीविध | म ॥ १० ॥ दमयंती हँस पसायथीजी । कीधा बहुला काम ॥ विषथी राय उगारियो जी । जोवो पोपटका काम ॥ म ॥ ११ ॥ एकावतारी तिथंच हुवेजी । I १ बडका वृक्ष १ विज्ञान
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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