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________________ ॥ दया धर्म धर सति पति ॥ सु॥३॥ सुख भोगवतां पुत्र भया । नंदसेण हरिसेण जया । नाम शुभ ए गुणे रया । शुक्ल शशीपर बृद्ध भया ॥ सु ।। ४॥ विज्ञान अवस्था जब आइ । बहोत्र कला तस भणाइ । वली धर्म ज्ञान घणो पढाइ । जिनमतनें मीजी भींजाइ ।। स ॥ ५ ॥ यौवने आया परणाया । गृहकार्य तस संभलाया । मावित्र धर्मे | मनरमाया। दोनों लग्या करणने कमायां ॥ सु॥ ६ ॥ विदेश जाणव मन थावे । रजालेवा| जनक कने आवे । तब मात पिता इम फरमावे । किण कारण तूं परदेश जावे ॥ ॥७॥ भाधन घणो छ घरमांह ॥ लागे सो खरचो भाइ ॥ तमसे अधिक कुछ छे नाहीं। जाणी क्यों पडो छो दुःख मांइ ॥ सु॥ ८ ॥ कुँवर कहे गयां प्रदेशे। कर्म परीक्षा थइरेशे । चातुरी कला गणी लेशे । देवो आज्ञा जावां हम जैसे || सु ॥९॥ नहीं मानता तस जाणी। दी आज्ञा मन मोह आणी । द्रव्य घणो लियो संग ठाणी । वली दासादि जे सुखदाणी ॥ सु ॥ १० ॥ पुरजन साथ घणा थइया । स्वपता माल साधे गहिया । शकेट भर सिन्धूर तटगइया । जोगा वाहण साथे सहया ॥ सु ॥ ११ ॥ आधे दरिये भूला पड्या । उवट मार्ग जाइ चड्या । पीवण जल खुट्या दुःख नडया। सिंधलद्विपे जाह अड्या || सु ॥ १२॥ द्वीप देखने खुशी भया। जल भरवा जलस्थान गया।दो भाइ द्वीप देख रह्या । मोटो भवन जो | आपसमें कह्या ॥ सु॥ १३ ॥ ए मनोरम्या भवनने पेखीजे। किसी रचना इणमें देखीजे । गाडा
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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