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प्रहर
२ आकाश
जिए ॥ तुज बाइने इण परे ए रात ॥ गयां एक जाम । दार सहू वन्ध करी ॥ रहजो मेहल *ने ऊपरे ए ॥ ९ ॥ खिडकी खुली राख । रहजो जागता ॥ हूं आस्यूं अंतलिख थी ए झूठी
न मानो एह । अब्बी जाऊं ॥ काज थसी ए सीखथी ए ॥ १० ॥ मदन फिर्या तत्काल । हर्षी सहेलडी । आश्चर्य करती ते गइ ए ॥ कहे कुँवरी थी उमंग । बाइजी सुणो ॥ करामाती ए नर सही ए ॥ ११ ॥ सुरविद्या धर एह । भरियो गुण नीलो ॥ बल रूप बुद्धि | | निपुणोजी ॥ कही अचंभकी बात । प्रीती थी भरी ॥ जेतो चित स्थिरे सुणो जी ॥१२॥ आवसी व्योम में उड । प्रहर निशागयां ॥ बात ए झूटी न हुवे जी॥कीजो इच्छा पूर्ण। | बन्दोवस्त सह । जोगो जोडे जग जुवेजी ॥ १३ ॥ सुण कुँवरी होय । धन्य घडी गिणे । चट पटी लागी मिलणकीजी ॥ कन्या व्यावनी ताम सामग्री सजी । गुप्त पणे तिहां हिलणकी जी ॥ १४ ॥ ऊपर गौखडा मांय । मित्राणी संगे । प्रेम तणी बातां करे जी॥
दिन लगे जुग समान । मुशकले आथम्यो । सहू दार बन्ध किया घरे जी ॥१५॥ १ आँख भ सजिया सह सिणगार । छिपके सहू तिहां ॥ वणी रती अनुहारसी जी। बैठी गोखे आये। २ आकाशग नभ में ठवी । आषाढ मेघ जल धारसीजी ॥ १६ ॥ लागी लग्न अतीमन ॥ कब | *
आई मिले । घडी जावे वर्षा समीजी ॥ जो जावे सणकार । चमके चित में ॥ नेणा जावे | तिहां रमीजी ॥ १७ ॥ हिवे मदन करामात । श्रोता सांभलो ॥ ढाल थइ एकादशीजी ॥ में