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१ दुकान
थकी । जावूं परदेश | पुत्री लास्यूं रायनी । करी चौकस धरी रेश ॥ ३ ॥ मुनीम कहे आश्चर्य करी । तो दुक्कर काम || बुद्धी बल साहस करी । पूर्ण करजो श्वाम ॥ ४ ॥ फिर न कीजो पाछली । सवाइ जोजो आय ॥ होट बंदोवस्त सह करी । फिर निज सदने जाय ॥ ५ ॥ ढाल १३ मी ॥ उग्रसेणकी लली | यह ॥ सुणो सभा चित लाय । मदन कुँवरीने इम समजाय ॥ आं ॥ आया हवेली निज ओरी मांया | मूर्खको तब रूप बणाय ॥ सुणो ॥ १ ॥ फटी चिदीका लीरा लटकाय । माथे बांधी बाल बिखराय ॥ सुणो ॥ २ ॥ एक व फाटी एक मूल नाय । फाटी अंगरखी घाली तनमांय ॥ सुणो ॥ ३ ॥ ज्यूंनी फाटी टोपी लीवी पेर । शरीरे लगायो धूल राख केर ॥ सुणो ॥ ४ ॥ इत्यादी भेष सज दरपण जोय । श्रृंगार माहे खामी नहीं कोय ॥ सुणो ॥ ५ ॥ शीघ्र चड आया पांचमें मजल | कुँवरी सामें दाखवे अपनी अकल ॥ सुणो ॥ ६ ॥ हड २ हंसता पड्या सामे जाय । करी मुरखाइ कुँवरीने हंसाय ॥ सुणो ॥ ७ ॥ अटकतो कहे सुणो आश्चर्य बात । आज एक आयो मुज ग्रामको भ्रात ॥ सु ॥ ८ ॥ तिण पूंछयो इहां तूं आयो केम । किण घर रहे । तुज शरीरनें खेम ॥ सु ॥ ९ ॥ मैं कह्यो म्हारा तात दीनो निकाल | रिस आइ इहां आइ । रहूं खुश हाल ॥ सु ॥ १० ॥ एक राज कन्या पासे रह्यो छू नौकर । चोखा वस्त्र अन्न मने आपे पेटभर ॥ सु ॥ ११ ॥ फिर ते मुजसे कहे थायरे वियोग |