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में जन एक । ठाट थी आ तो देखायजी ॥ रतांजणी चरचित तस अंगे। कणेर पुष्प पहम. श्रे.
शाखण्ड ४ रायजी ॥ म ॥ ६॥ आगल फूटो ढोल बाजाता । सुभट शब्द उचारे जी । इणरा सहायक कोइ मत होवो। इणरा कर्म इने मारेजी ॥७॥ तेहने देखण ऊंचे स्थाने । ऊभा मदन जोगी दोइजी ॥ वंदीजन औलखी तो प्रेक्षी । मदनजी हर्षित होइजी ॥ म ॥ ॥८॥ चिंते याने किण काज बान्ध्या । कांइ गुणो इण कीधोजी ॥ गुरूजी से कहे || हुकम होय तो। छोडावू काल सुख दीधो जी ॥ म ॥९॥जोगी कहे उपकार ए कीजे। तब ऊभो सहू आडोजी ॥ अहो किहां ले जावे इणने । कांह अन्याय देखाडोजी |
म ॥ १०॥ राय भट कहे यह अन्याइ । विन गुणे इण पापीजी ॥ पोतानी नारी नो नाक काट्यो झूटो बोले तथापीनी ॥ म ॥११॥ बंदीवान कहे महाराजा म्हारी अर्ज सुण लीजोजी ॥ न्याय अन्याय हियामें तोली । गुन्हेगारने दंड दीजोजी ॥ म॥
॥ १२ ॥ मैं छु रत्नपुरीनो वासी सेठ । सुदर्शननो पूतोजी ॥ अंगज महारो नाम कहिये। 12 व्याव इहां मुज हूंतोजी ॥ म ॥ १३ ॥ आणो लेवा बहुदा आयो । नारी न चाले
मुज घेरो जी ॥ दोइ स्थान हँसी हुवे महारी । खायो घणोही फेरोजी ॥ म ॥ १४ ॥ एकदा मैं मन माहें विचार्यो । उपवय हुई मुज नारीजी ॥ किंचित प्रीती किम नहीं | मजपे । क्यों नहीं चाले लारी जी ॥ म ॥ १५ ॥ हम चिंती परस्यंनी राते । मजने |