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16 वट वृक्ष पासे आविया । देखी चड्या उतंग ॥ मौली बान्धी एक डालपे। पडे नहीं तिम |
तंग जी ॥ ठन्डथी थूजे थर २ अंग जी । बैठा चारूंही धरत उमंग जी । ढाल चौथी |
चडते तरंग जी । कही अमोलख अभंग जी ॥ भवी ॥ ११ ॥ दोहा ॥ अब्धी पूर उतर | अन्धारासी । जास्यां अपणे गेह ॥ तात मातने भेटस्या। इम चउं कल्पे तेह ॥ १॥ कृष्ण पक्ष
काली घटा । कृष्णतम कृश चित ॥ नेणा निज करना लखे। विसर्या ते निज हित ॥ २ || |॥ अन्न नहीं उरने विषे । शीतल बाजे वाय ॥ सरण एक तरु डालनो । बिजलिया झबकाय ॥३॥ थाक तणा संजोग थी। सुस्ती व्यापी अंग ॥ आपसमें चारों वदे ॥ रहो ||
हुशारी एढंग ॥ ४ ॥ प्राप्त कष्ट खुटाव वा । कोइक छेडो बात ॥ जिमए काल अतिक्रमें KI वामिले तातने मात ॥५॥ ढाल ५॥ बण जारारे यह ॥ सुणो भाईरे ॥ श्रीधर
कहे एम । दुःख मां बात सी आवडे ॥ सुणो भाईरे ॥ सुणो भाईरे ॥ जीव चिंतामें हपूर ॥ अन्य कामे किम प्रवडे ॥ सुणो भाईरे ॥१॥ सुणो भाईरे ॥ मेतारज कहे तामभू
चित माहे उपजे जेही ॥ सुणो ॥ सुणो॥ तेही कहो इणवार । जे जे मनमां आवही ॥ सुणो। २॥ सुणो ॥ अंगज कहे सल्लाठीक । किमही काल खुटाडवो ।। सुणो ॥ सुणो॥ जेजे मनमां चहाय ॥ तेते कही देखाडवो ॥ सुणो ॥ ३ ॥ सुणो ॥ मदन कहे हां गम्मत