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________________ नवो नाणो गृही जी। नित्य नवो लावे धान ॥ नित्य पीसी निपजावह । तेहनो सह करे * खान जी । इम दिन आवे मध्यान जी । क्षुधा व्यापे असमान जी । तृप्त होवे पी पान जी । इम चलावे गुजरान जी ॥ भवी ॥ ६॥ एक दिन गया चारी जणा जी। मौली ले वा वन मांय ॥ सरिता उलंघी निकल्या । गेहरी झाडीमें जाय जी ॥ कापी काष्ट ने भारी | बंधाय जी । तब मेघ घटा उमंगी आय जी । वर्षण लागी मोटी धाराय जी । चारो भाईने चिंता भराय जी ॥ भवी ॥७॥ रखे पूर आवे नदीनो जी। रुकां आंपा इण | जाग । मात तात दूरा रहे । उतरवानो जावे लाग जी। चाल्या चहूं तिहां थी भाग जी ।। मोली सिरपर बोज अथाग जी । पण न गिणे चिंता नो छागजी । जोयो नदी में | K पांणी अमाग जी ॥ भवी ॥ ८॥ कांठे छक सरिता भरी जी। चउजणा जोइ नेण ॥ | धस्को पज्यो छाती विषे । तब कहवा लाग्या वेण जी । इणथी अलगा रहो सेण जी ॥ एतटनी थइ वेरण जी ॥ क्षुधा भी लागी दुःख देण जी। किस्यो करणो कहो हैणं जी ॥ भवी ॥९॥ समय २ वारी चडे जी आयो चारांने पग ॥ पाछाते फिरवा लग्या। नहीं दीसे जावाको लग जी ॥ पाछा जावे किहां भग जी । जल उछाला खाय अथग |जी । भय जागे सूनो लागे जग जी। तब जोवण लाग्या खंग जी ॥ भवी ॥१०॥ १ नदी २ अवी ३ आकाश
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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