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1 हुई इण वारजी ॥ करता मोटा २ वैपारजी। उपराजता द्रव्य अपारजी । फिरता
वस्त्र गेणे भार जी । हिवे थइ रह्या निराधार जी ॥ भवी भवितव्यता सांभलो || ॥ आं ॥ १॥ पूरो पेट भरे जितो भाइ । कमा सका नहीं धन्न ॥ अन्न वस्त्र
रा सांसा पडया। तेहथी दुःखी हुयोछे तन्नजी ॥ रहवा ने पूरा न जतन्नजी। किम भकर समजावा मन्नजी। किण रीते पालां इत्ता जन्नजी। हम किण पर खटसी दिन
जी ॥ भवी ॥२॥ कोई तुच्छ वैपार थी जी । पालां अपणो परिवार ॥ द्रव्य लागे नहीं। तेहमां । ऐसो करिये विणज इणवार जी ॥ नहीं चाहिये बीजारो आधार जी। नरेवां
कधी लाचार जी । नहीं कष्टसे जावां हार जी। ऐसो कोइ एक करो निराधार जी ॥ 18 भवी ॥ ३ ॥ सेठ कहे भाइ एहवो तो। छे कठियारा नो काम ॥ नित्य काष्ट लावो वनधकी ||
तिणरा नहीं लागे दाम जी ॥ कोई खुशामदी नो नहीं काम जी ॥ आपणी पण पूगसी
हाम जी । पण कष्ट पडे घणो चाम जी । चारूंवन्धू धरी ते हाम जी ॥ भवी ॥ ४|| १ धन | कोइक कष्ट करी तिहां जी। कमायो थोडो वित्त ॥ रस्सी कुदाली खरीद ने । का|E
छडी वान्धी चारूं मित्त जी । जावे वम मांहे धर हित जी। दारुक भारी लावे नित्य जी बेची बजारमें लेवे वित्त जी । तेहथी माल लावे इच्छित जी ॥ भवी ॥५॥ नित्य
लक्कड