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दिशा संपवा आइ । तब जे जोग बण्याइजी ॥ सुणो ॥ २७॥ ते सुणी यों कहे ऋषि |
खण्ड ७ अमोलक । सप्त खंड ढाल पहली थाइ जी ॥ सु ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ वसंत ऋतुते में अवसरे । पसरी भूमंड माय ॥ तरुवर नव पल्लव थया । लीला लेहर सोभाय ॥१॥ वसंतक्रीडांने कारणे । नृपराणी परिवार ॥ पुरजन परजन बहु मिली। वनी कामे रहे|
आय ॥२॥ अभिनव भूषण चीवरा । नवरंग उडे गुलाल ॥ मस्त तान वाजिंतरे । गाता वीराग धमाल ॥३॥ तिण अवसर राय पुत्रिका । पुष्पवती गुणवान ॥ सरखी सहेली संग |
ले । खेलती एकांत स्थान ॥ ४॥ आनंद मंगल वरतना । चउदिश जय २ कार ॥ तव अचिंत्य होतब बण्यो । सुणियो मदन कुँवार ॥ ५॥ ॥ ढाल २ री ॥ आदही आद जिनेश्वरोजी ॥ यह ॥ भवितव्यता भाइ सांभलोजी। तिण अवसरने मझार ॥ अंजन | १२३ गिरीना सरीखोजी । करतो अति गुंज्जार ॥ भ ॥ १ ॥ कालो मतवालो मद भर्योजी ।। भरतो मोटी फाल । सूंडा दंड उछालतो जी । दीसे ज्यों आयो काल ॥ भ ॥२॥ गाजे
भाद्रव मेहलो जी । तीक्षण दंतासूल ॥ सात अंग धरणी लगे जी । जोया शुद्ध जावे भूल Sinभ ॥ ३॥ वायु वेगे दोड तो जी। आयो राज कन्या पास ॥ देख्यो नहीं कोइ तिण | भणी जी । सहू लागी क्रीडा अभ्यास ॥ भ ॥ ४॥ झूलती राय धूया भणी जी । अधर | लीवी उठाय॥ घबराड पाडी चासला जाराततल गज भग जाय ॥
टी चीसली जी। तेतले गज भग जाय ॥भ ॥५॥