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॥ ॥ २०॥ घणा लोककी गर्दी थाइ । हाहाकार मचाइजी ॥ ढाल चतुर्दश कही अमोलक । मदन सहाय कुण आइजी ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ अम्बिका नामे देवीनो। देवल घणो मनोहार ॥ विश्रामो पन्धी जना । लेवे तेह मझार ॥ १॥ तिण अवसर तिण मंदिरे । बहुविद्याका जाण ॥ जोगी एक जुगती करी। बैठा लगाइ ध्यान ॥२॥ कोलाहल सुणी करी । ध्यान पार तत्काल ॥ आया देवल वाहिरे । विसम्या नेण | निहाल ॥ ३ ॥ पुन्यवंत एक बालने । घेर रह्या घणा लोक । बृद्ध नर लटक्यो वटतले। |किस्यो जम्यो ए थोक ॥४॥ तत्क्षण चल आया तिहां । लोक देख हर्षाय । आदर | | देइ अतिघणो ॥ हुई बात दर्शाय ॥ ५ ॥ॐ ॥ ढाल १५ मी ॥ कोयल हुक रही ||
मधुवनमें ॥ यह ॥ गुणीकी संगत गुणीजन पावे । गुणीने गुणी मिल्या हर्षावे ॥ आं॥ | मदन गुणवंत जोगी जोई । मन माहे खुसी घणो होइ ॥ गु॥१॥ तत्क्षण आइ पडयो | जोगी चरने । स्तुती करी रह्यो उत्सहा धरने । गु ॥२॥ हिवे सरणो छे नाथ तुमारो। ए महासंकट महारो निवारो ॥ गु ॥ ३॥ हूं निराधार पडयो फंद मांह । मुज अपराध | इणमें कुछ नांइ ॥ गु ॥ ४ ॥ सेठजी मुजपे किया उपकारो । अशुभोदयथी थयो | अपकारो ॥ गु॥५॥ सहू कहे यो मीठो कपटी । मत चाले लागो देवेला चपटी ॥ गु॥६॥ मदनकी दया जोगीने आइ । सहू ननने विश्वास दी याइ ॥ गु ॥७॥ घोटा की तत्क्षण