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खण्ड ३
५६
म
१ पुकार
में करूं कांह जी ॥ पुण्य ॥ १० ॥ ए नर नहीं कोइ छ इन्द्रजाल्यो । मुजने फंदमें डाली
जी ॥ आप छ्टीने किहां अब जावे । सेठजी पाडी किंकाली जी ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ धावोरे धावो दुष्ट ने पकडो । इण कधिो अन्यायो जी ॥ उपकारनो बदलो इण दीधो । अपकारी ए, सवायो जी ॥ पुण्य ॥ १२॥ मदन कहे सेट दोष नहीं महारो । हूं नहीं जाणं भेदो जी ॥ उपकारी आपपे संकट जोहाई पावं; खेदो जी ॥ पुण्य ॥ १३ ॥। | सेठकहे कर छूटको म्हारो । तो तूं जीवतो जासीजी ॥ नहींतो फिर फजीती पुरी।
थारी इण ठाम थासी जी ॥ पुण्य ॥१४॥ मदन सेठ नेडो नहीं जावे । रखे पाछो जावू ६ चेंटी जी ॥ उतारे सेठनो साद सुणियो ॥ थी थोडीसी छेटी जी ॥ पुण्य ।। १५॥ सहू
जणा जोइ बड तले आया। लटकता सेठ देखायाजी ॥ रिसाणा सठ अंगुली करीने । मदन भणी बताया जी ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ तत्क्षण पकडी मदनने तांड ॥ धक्का मुक्का लगाया जी ॥ यो जादूगर बडो अन्याइ । अरे क्यों सेठ टंगायाजी ॥ पुण्य ॥१७॥ छोडरे दुष्ट सेठने वेगा । स्यूं टग मग रह्यो जोइजी ॥ छोड्या बिन जावा नहीं देस्यूं । कमवक्ती तुज होइजी ॥ ३ ॥ १८ ॥ मदन कहे निश्चय नहीं जाणूं । छूटण धांधण उपायोजी
क्यों विनकारण मुजने मारो । कीजे रुडां न्यायोजी ॥ पु ॥ १९॥ लौक कहे अरे मीठा ठगारा ॥ क्यों वणे अव भोलोजी | सेंठो पकडी उभा मदनने । जरान मूके पालोजी ॥