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करामाती जोगी मिलिया । सुवर्ण पुरुष निपाय जी ॥ धन्य ॥ २१ ॥ पाछा आया विद्या | पाया । विमाण केरीगतजी ॥ हमने छोडाया जोगी हराया । इहां लाया देखो सतजी ॥ धन्य ॥ २२ ॥ चमत्कार सहू हृदय पाया । सुणी मदन विरतंत जी ॥ धन्यकार सहू मुख्य थी निकल्या | ए नर महापुण्यवंत जी ॥ धन्य ॥ २३ ॥ बटी बधाइ दीनी मिठाइ । नृत्य जय २ कार जी ॥ ढाल सोलमी कहे अमोलख । पंचम खंड मझारजी || धन्य ॥ २४ ॥ ॥ दोहा ॥ सभा वरकास हुइ तदा । नृपत आज्ञा लेय || आया मदन दुकान निज | सत्कार सहू देय ॥ १ ॥ मुनीमादी संतोष या । सहजन पाया सुख ॥ मालक पुण्यवंत पामिया । धन्य २ कहे मुख ॥ २ ॥ वक्सीस देह मदनजी ॥ कम कर सह संतोष ॥ गुणसुन्दरीनें मिलण | उठिया मंगत पोष ॥ ३ ॥ आया हवेली आपणी । नफर दियो सत्कार ॥ धन बचने संतोषने । पूंछा सह समचार ॥ ४ ॥ जिम आप छोडी गया । तिमही सब सुख मांय | बंदोवस्त पुक्तो रह्यो । इम सुणी सुख पाय ॥ ५ ॥ * ॥ दोहा १९ मी ॥ इंडोरे आंबा आंबलीरे || यह ॥ गुणसुन्दरीने मिलवा भणी जी । हवेली ऊपर आय ॥ नियमित स्थान पहलां तणो जी । तिहां रूप पलटाय ॥ श्रोतागण जोवो मदन करामात ॥ आं ॥ गेहणा वस्त्र उतारिया जी । मेला फट्टावस्त्र पेहर । धूल स्वाक तनने मली जी । सिरका बाल विखेर || श्री || २ || सागे मूर्ख सरखा बण्याजी । चडिया ऊपर तेह | हँसिया