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केह प्रकारना । करे बुद्ध प्रकाश ॥ ३ ॥ निरभिमानी मदनजी । ढोंग बधायो । म. श्रे.
खण्ड २ सनाय ॥ वैपार वक्त वेपारी हो । नित्य व्यवसाय चलाय ॥ ४॥ वणे प्रधान प्रधान वक्ते।
दे धर्मी ने सहाय ॥इम सुखे काल अतिक्रमे । आगे आश्चय थाय ॥५॥ ढाल ११ मी ॥ |आघा आम पधारो पुज्य ।। यह०॥ सुण जो होणहार गत भाइ । ते अचिंत्य गुजरे आइ
॥ ७ ॥ तिण अवसर वसंत ऋतु आइ । वन वाडी फुलाइ ॥ कंदर्प मित्र व अहलाद बधावा । बन क्रीडाने जाइ ॥ सुण ॥१॥ राजा राणी सामंत सहेली और
पुरका नर नारी ॥ हिल मिल आया बागके मांही । करे भोजन तैयारी ॥ सुण ॥२॥
गोला रोटा बाटी वाफला । घृते पूर्ण भरिया ॥ तेज मशाले दाल झोलकी । चतुराइ 5 स्यूं करिया ॥ सुण ॥ ३॥ और केह पक्कानज लाया । जवैरी झारा बणाया ॥ गटकाइ
लौटा भर २ ने ॥ केफ मगनज थाया ॥ सुण ॥ ४॥ रंग गुलाल उडाइ गेरी । मिल बरोबरीका साथे ॥ चंग मृदंग झालरी बाजे । गावे धमाल लटकाते ॥ सुण ॥ ५॥ इम रमंता नशोज उतर्यो । क्षुधा तब प्रगटाणी ॥ माल मशाला जीम्या सहु मिल । मन मान्या उरताणी ॥ सुण ॥ ६॥ लेह तंबोल बैठा एक स्थाने । मित्र सहेली परवरिया ॥
बुद्ध विनोदकी करी मस्करी । मधुर गायन उच्चरिया ॥ सु॥७॥ मकर केतु भू - मतिराणी । रूप सुन्दरी बाइ । रूपे रंभा दीठा अचंभा ॥ सुर नरने उपजाइ ॥ सु॥
HINABRANI