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4८॥ सुकुमाल बाला मोहनमाला । सहेली संग संचरिया ॥ नाचे गावे नवरंगे । हेत
हियामें भरीया ॥ सु ॥ ९॥ सहेल्या विचथी रायनी पुत्री । आदर्श था ते वारो ॥ | सहेल्या नहीं देखती कुँवरी । विस्मय पाइ अपारो ॥ सु ॥ ॥ १० ॥ बाइजी २ सहू पुकारे।। | उत्तर नहीं कछु पायो । आस पास सहू ढूंढी जागा । तो पण नहीं देखायो ॥ सु ॥ ११ ॥ | घबराह तब सहू सहेली । हाहाकार मचायो ॥ दौडो २ वाइ किहां गइ । केहक रूदन | करायो ॥ सु ॥ १२ ॥ केतुमतीराणी आइ दौडी । आतुरी आइ पूंछे ॥ किहां गई रूपी
मुज प्यारी । रोवानो कारण स्यूं छे ॥ सु ॥ १३ ॥ हम सहू मिल इहां खेलती । विचमें | हुंती बाइ ॥ रमती २ अदृश्य हो गई । एकाकी न देखाइ ॥ सु ॥ १४ ॥ नजाणे पृथवीमें पेठी। को आकाश उडाइ॥ गइ होवे तो ठाम बतावां। आश्चर्य येही आइ॥
सु ॥ १५॥ घबराइ मुरछाइ राणी। दास्या भागी जाइ ।। अर्ज करी राजाजी आगल । में तिहां अनर्थ निपज्याइ ॥ सु । १६ ॥ रंगमें भंगथयो तिण अवसर । सहु दौडी | तिहां आइ ॥ किहां गइ वाइ पतो न पाइ । सहू रह्या घबराह ॥ सु ॥ १७ ॥ गुप्त प्रसिद्ध जोया सहु स्थानक । ग्राम जंगल के मांह ॥ सवार प्यादा घणा दौडिया । मिली नहीं किण ठाइ ॥ सु ॥ १८ ॥ आते रौद्र ध्यान करता । सज्जन पुरजन फिरिया। निज २ घर सहू चुप आषैठा । चिंताए मुख उतरिया ॥ सु॥१९॥ राणी ते समजाइ