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॥१२॥ क्रोधातुर नरेश्वर तव । ठोकर सेज ने मार ॥ जगाइ कुँवर भणी । घबरी उठी ते वार ॥ सु ॥ १३ ॥ अति शरमाइ सेज छोडी । दूर ऊभी जाय ॥ वस्त्रथी अंग ढांक धूजे । नींची दृष्टि ठहराय ॥ १४ ॥ राय कहेरे कुल खप्पन । कलंकित निर्लज्ज ॥ किणरे । साथे कर्म फोड्या । बोल सत्यकूकज ॥ सु॥१५॥ उत्तमकुलमें होइ उत्पन्न । किम सूज्यो | एकाम ॥ पवित्र कुलने पापणी थें। आज कीधो श्याम ॥ सु॥१६॥ जन्मतां जो मरी होती। अथवा इत्ता दिन ॥ तो एकवक्त रोइ रहता। न होतो ए रिन ॥ सु ॥ १७ ॥ इत्यादी बहु कटु बचने । राय को तिरस्कार ॥ कुँवरी उत्तर देत नाहीं ॥रही ते मौन धार ।सु॥१८॥
राणी कहे ए विषकन्या । सांपण सम देखाय ॥ जीवती नहीं काम की। दो यमसदन में | पहोंचाय ॥ सु॥ १९ ॥ दास ने राय हुकम देवे । न्हांख खाडी माय ॥ कुँवरी कहे हूं पडूं जाइ । जिम सब सुख पाय ॥ सु॥२०॥ मेहल पाछल खाइ ऊंडी। गोखे ऊभीरेय । सर्व क्षमाइ जप प्रमेष्टी । छुट्टी मूकी देह ॥ सु ॥ २१ ॥ पडी कुंवरी रोइ माता।
आ बैठी निज ठाम ॥ राजाजी पण गया सभामें ॥ पस्ताई मन ताम ॥सु ॥२२॥ संप्रमेष्टी स्मरण प्रभावे । आल न आयो रंच ॥ ढाल चडदे कही अमोलक । आगे जोवो
|संच ॥सु॥ २३ ॥ ॥ दोहा॥ राय तलार बुलाय ने। कहे धमकाइ एम। जुल्म १ कोटवाल
होवेहे रात में। तूं नहीं जाणे केम ॥१॥राते परण्या नर तणी। चौकस कर पुरमाय ॥