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श्रे.
खण्ड
उदय होसी पाप हो ॥ धन सज्जन सब छूटसी हो। तिणथी चेतावू साफ हो ॥ होण ॥१२॥ पहला ही हुशार होयाने हो । वंदोवस्त करी घरमांयहो॥ वस्त्र भूषण जापत करीहो । जिम रहेते एक ठाय हो ॥ होण ॥ १३॥ पुत्र वधूने पीयरे हो ॥ पहराइ भूषण | पहोंचाय हो ॥ पीछे विश्वासुनर भणी हो। घर माल संभलाय हो ॥ होण ॥१४॥ | नारी पुत्र साथे लही हो । रहो परदेशे जाय हो । साहस राखजो मन विषे हो ॥ दुःख | संकट जब आय हो ॥ होण ॥ १५ ॥ नेडा कठे रहजो मती हो। जिम न औलखे कोई
जात हो ॥ वेश बदल रहजो वेगला हो। जिम नहीं होवो विख्यात हो ॥ होण ॥ १६/17 | ॥ एक युगने मायने हो ॥ मिलसी ऋद्धि सिद्धी जोग हो ॥ सुख संपत पासो घणी हो | | ॥ मिलसे सहू इच्छित भोग हो । होण ॥ १७॥ इम उपाय किया थकां हो ॥ लाज
रहसी जग माय हो ॥ देश चोरी थी भीख परदेशकी हो । रूढी जगतमें कहवाय हो। | होण ॥ १८ ॥ इणही कारण चेताविया हो । हितकारक थाणी थाय हो ॥ मान सो तो | सुख पावसो हो । आगे तुमारी इच्छाय हो ॥ होण ॥ १९ ॥ वयण प्रमाण कों सेठजी |" | हो । मान्यो घणो उपकार हो ॥ सुरी आदर्श हुई तदा हो ॥ सेठ करे नमस्कार हो॥ हाणे | ॥ २०॥ ढाल दूजी देवी सीखकी हो। सेठने हुवो विचार हो ॥ अमोलख ऋषी कहे
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