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विद्याभिलाषी मुनिश्री राम ऋषिजी म. सा. तथा मनोहरव्याख्यानी विदुषी श्री. सायरकुंवरजी महासतीजी नवदीक्षित श्री पारसकुंवरजी महासतीजी ठा. ७ विराजतेथे उससमय पं. मुनि श्री कल्याण ऋषिजी म. सा. व्याख्यानकेसमयमें भगवतीसूत्र के साथ मदनश्रेष्ठीचरित्र फरमाया करतेथे । तब कुछ श्रोताओंकीभावनाथी ऐसी रसभरी पुस्तककी प्रतियां इससमय ज्ञानप्रेमियोंकेलिये ढूंडनेपरभी दुष्प्राप्य हैं; इसलिये अगर इसकी पुनरावृति होसकेतो ठीक है । उसी उद्देश्य को लेकर प्रस्तुत पुस्तककी द्वितियावृत्ति की जारही है । अतः रचयिता तथा प्रसिद्धकर्ताके उपकारपर लक्ष देतेहुए ज्ञान प्रेमी इस पुस्तकका सदुपयोग करेंगे । सुज्ञेषु किं बहुना ।
जलगांव ता. २८-७-४१
निवेदक पं. हरिश्चन्द्र शर्मा