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॥दोहा ॥ सिद्ध साधुको नमन कर । सिद्ध करनको काज ॥ द्वितीय खन्ड प्रारंभ दो शुद्ध बुद्ध को साज ॥ १॥ चंदपुरीमें ऊपन्या । चंदप्रभू महाराज ॥ चंदवरण प्रण सदा ॥ सारो इच्छित काज ॥२॥ चंचल स्वभावी जे नरा । ते तो स्थिर नहीं रेय ॥ जे करवा निश्चय कियो। उपाय करे ते तेय ॥ ३॥ श्रीपुरमें खाती धरे । रहे मदन र कुवार ॥ बैठा चैन पडे नहीं । करी काइक विचार ॥४॥ फिरवा निकल्या शहर में ॥ * जोवे कोई उपाय ॥ जेहथी इच्छित सिद्ध हुवे । देखे चित्त लगाय ॥५॥ विश्वेश्वर नामे | तिहां ॥ कलाचार्य प्रवीन । राजपत्र पढावतो । करीनें विद्या लीन ॥६॥ पाठकशालाने | | विष ॥ छत्र बहुला आय ॥ मदन तिहां आइ खडा । जोवे दृष्टि लगाय ॥७॥ दो में विभागते शाळना ॥ पट अंतर में डाल ॥ कुँवरी कुँवर भेगा भणे । राजकुलना बाल E
॥ ८॥ तिणमें मतलष आपनो । होतो दीठो मदन ॥ चुप चाप फिर आविया || खातीरे सदन ॥ ९॥ ढाल १ ली ॥ दया धर्म पावे तो कोइ पुण्यवंत पावे ॥ यह देशी मदन कुँवर निज कार्य साधनने । तुर्तही बुद्धि उपावे जी ॥ जिम कोइ ओलखवा नहीं | पावे । तिम निज रूप पलटावेजी ॥ मदन ॥१॥ मेला फाटा लीरा लटकता । वस्त्र | धार्या निज अंगोजी ॥ राख रज मेल डीले लगाइ । बहु तरह लगायो रंगोजी ॥ मदन ॥२॥ खाती खातण ए तमाशो जोइ । आपसे हँसवा लागा जी ॥ आज किस्यो ए