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________________ म.श्रे. ६१ 1 जारने । उभो कियो नृप पास ॥ वीती वारता रातकी। कीनी सह प्रकाश ॥ १ ॥ मुज ने पण बोलावियो । मैं कही साची बात ॥ इण नर मुज मारण भणी । रच्यो हूंतो उत्पात || २ || आप पासाये मैं बच्यो । दीजे इणने दंड || लोक सुणी सह थर हरे । फिर न हुवे ये भंड ॥ ३ ॥ प्राणांत शिक्षाकारी । दिजो सुलीये चडाय ॥ पाप कट्यो मैं इम | कही । हर्ष्या मनरे मांय ॥ ४ ॥ मन उतर्यो इण नारथी । कियो जावण विचार || दिवस थोडो जाणी करी । रह्यो रात ए वार ॥ ५ ॥ ढाल ३ जी ॥ कमलदल लोचना ॥ यह ॥ चतुर जन प्रेक्षिए । एतो चरित्र पूर्ण भरी नार ॥ च ॥ आं ॥ तिण अवसर मुज श्वसुर सासु । जो पुत्री व्यभचार ॥ च ॥ १ ॥ शरमाया घणा मनके मां । दियो तास धिक्कार ॥ च ॥ २ ॥! लोक देखावुं ते पण शरमी । नरमी करे उच्चार ॥ च ॥ ३ । चूंक ए म्हारी मोटी घणी हुइ । क्षमा करो हितकार ॥ च ॥ ४ ॥ हिवे कधी इसो काम न कर स्यूं ॥ बोली दीन हो लाचार ॥ च ॥ ५ ॥ सुसरा मुज मनाइ लेगया । तेपडी पग मझार ॥ च ॥ ६ ॥ सासु सुसरे करे नरमाह । मुज हियो दियो ठार ॥ च ॥ ७ ॥ बुरी भली पण एछे तुमारी । हिवे लेवो संभार ॥ च ॥ ८ ॥ जो उंडो विचार न करसो तो | पस्तासो कोइ बार ॥ च ॥ ९ ॥ नाम घणो जगमाही भंडासी । लोक देशी फिटकार ॥ च ॥ १० ॥ दाबी बुरी बात इहांहीं राखो । लेजावो इने लार ॥ च ॥ ११ ॥ इत्यादी खण्ड ४
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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