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| गोती भाइ बेनडी। मिलिया आइ सेश ॥ पग ॥ १८॥ बाजिंत्र थी अम्बर गाजे । गायन किन्नरी लाजेरे ॥ देवपुरीसो पयठाण पुरको । लोक सजायो साज ॥ पग ॥१९॥ मेघ धारा पर द्रव्य वावरे । दोइ घर कमी नहीं कायरे ॥ आनंद रंगे सहू हाले माले । | जोडी जुगती गवाय । पग ॥ २० ॥ छट्टे खन्डे प्रथम ढाले । मंडियो लग्न मंडाणरे ॥ | अमोल कहे पुण्यवंत जीवने । पग २ नव निध्यान ॥ पग ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ से दिन | मदन जी चिंतवे । आज लग्नकी रात ॥ इण हीज बजारे हुइ । निकलसी बरात ॥ |१॥ गुणसुन्दरी ते जोवसी । होसी मन नाराज ॥ तिणने पहली परचाइने । पाछे करूं |ए काज ॥२॥ आइ हवेलीने विषे । मूर्ख रूप बणाय ॥ हँसता रमता कुँवरी कने । पड्या मदनजी जाप ॥ ३॥ मिथ्या लापे गप्प थी। खुशी कियो तस मन ॥ फिर कहे र आज मुज काम छे ।. आस्यूं कालके दिन ॥४॥ गुणसुन्दरी कहे मरख्या। थारे छे | किस्यो काज ॥ तब मूर्ख कहे सांभलो । कहूं हूं तजेन लाज ॥५॥ ॐ ॥ ढाल २ जी। कर्म तणी कथनी रे किहां जाइने कहूं। यह ॥ इणहीज नगरीरे माये रहे । प्रभूत धन, नामे एक सहूकारजो ॥ धन धान घणो छे तस धरने विषे । राजा परजा सहू देवे सत्कार जो ॥ सुणियो मदनजी चरित्र करे छे केहवा ॥ ७॥ मदन नामें नंदन छे एक छे तेहने । रूपेतेतो अतिघणो शोभाय जो ॥ बोलणरी कुछ शुद्ध नहीं छे तेहने । तिणथी