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|| आं॥ पद्म कहे देव हूं किस्यो मांगू । हुइ मुज पर गुरु कृपारीरे ॥ भा ॥ १ ॥ सर्व मनोरथ || | पूर्ण हारी । या आखडी अछे हमारीरे । भा॥२॥ देव दर्शन निर्फल नहीं जावे । तेहथी | हुकम दो कोइ उच्चारीरे ॥ भा ॥ ३ ॥ इम आग्रह सुरतणो जाणी। पद्म कहे जो इच्छा |* तुमारीरे ॥ भा ॥ ४ ॥ सूको काष्ट म्हारे नित्य आवे ॥ जे इच्छं ते जावे घडारीरे ॥ भा॥ ५॥ दोनों वर सुर तबही स्मरप्या । अनेवली निधी देखाडीरे ॥ भा॥६॥ कर प्रणाम
गयो निज ठामे । पद्म जी चित हारीरे ॥ भा ॥ ७॥ दिन ऊगा गुरु देव समरिया। में द्रव्य ते साथ लीधारी रे ॥ भा ॥ ८ ॥ आयो निज घर ग्रन्थी बताइ । हर्षी जोइ घर नारी रे । भा ॥९॥ कांहक तो आज लाया दीसे । उभी होइ सत्कारी रे ॥ भा ॥१०॥ रात रह्या था आप किहां जा । निज बालाने विसारी रे ॥भा॥११॥ घर अंदर जाइ पोटली खोली । अपार द्रव्य देखाडी रे ॥१२॥ धर्म पसाये दुःख दूर टलिया। देव संतुष्ट थयारीरे॥ है भा ॥ १३ ॥ अव कोइ मेहनत करनी न पडसी । थास्ये मन चिंत्यारीरे ॥ भा ॥१४॥ सुतारणी घणी हर्षानंदे । करे भोजन तैयारीरे ॥ भा ॥ १५ ॥ अष्टम तप को पारणो कीघो।
तृप्त हुईछे इच्छारीरे ॥ भा ॥ १६ ॥ सूखे समाधे सूता निद्रामें । तब देव स्वपन दिधारीरे IR||भा ॥१७॥ दिनऊगा नित्य सूखो लकड । नदीमें आवसी वह तारीरे ॥ भा॥१८॥ कर
| लम्बाया हाथमें आवसी । इच्छित लीजो बणारीरे ॥ भा॥ १९॥ जाग्रत हुई सत्य स्वपन