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संभार्यो । देवता दीधा जाण्यारी रे ॥ भा ॥ २०॥ चल आया सरिताने कांठे । पूर जातो
जोयो बारीरे ॥ भा ॥ २१ ॥ लोक घणा जोवाने आया। तमाशा आश्चर्य कारीरे ॥ भा॥ 12|२२ ॥ आगल सुणियों मदन चरित्र । ढाल आठ अमोल उच्चारीरे ॥ भा ॥ २३ ॥8॥ |
दोहा । तिण अवसर ते मही विषे । काष्ट तुरी ज्यों स्वार ॥ मदन जी जल क्रीडा करत।। * आया चल मझधार ॥१॥ श्रीपुरने ढिंग आवता । तब ऊग्यो दिनकार ॥ ठाठ जम्यो |
तट ऊपरे । जोये मदन कुंवार ॥ २॥ सरल साद कहे कहाडियो । कोहक मुजने पार ॥ | उपकार होसी अति घणो । मान स्यूं मैं आभार ॥ ३॥ हा हा कार सहुकार रह्या । पडीन !" सके नद माय ॥ जीवित वाहलो सहू भणी । मरण मुखे कुण थाय ॥ ४॥ अंगुलीया पुन्य र बहु करे ॥ जोइ मदन पुण्यवंत ॥ नलकुँवरने सारिखो ॥ साहसवंत दीखंत ॥५॥ ढाल में |९ मी ॥ इण सरवरीयारी पाल ऊभी दोह नागरी ॥ यह ॥ पद्म खाती हर्षाय । दीर्घ कर | तब कियो ॥ हो सुजाण ॥ दीर्घ कर तब कियो ॥ सहायक देवने स्मर । ते काष्ट पे चित दियोहो ॥ सु०॥ ते काष्ट ॥ तत्क्षण मुडियो काष्ट । आगा कर पद्मने हो ॥ सु०॥ आयो॥ उतरी मदन तत्काल । गृह्या तस कद्मने हो ॥ सु० ॥ गृह्या ॥१॥ तात जी महाउपकार। १पग आज मुजपे कियो हो ॥ सु०॥ आज ॥ मरण कष्ट छुडाय । दानजी तब दियो हो ॥ सु०॥ दान ॥ तुम सम अपर न कोय । म्हारे इण जगत में हो ॥ सु० ॥ म्हारे ॥ विनय वचन
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