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म.श्रे.
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सुणी पद्म । हृयों मोह रक्त में हो ॥ सु० ॥ ६० ॥ २ कहे धन्य २ मुज भाग । लाभ अचिंत्यो थयो हो ॥ सु० ॥ लाभ || अनुत्र्याने मिल्यो पुत्र । सकल गुण युक्त यो हो ॥ सु० ॥ सकल || आणंदी चांप्यो उर । घरेले आविया हो । सु० ॥ घरे ॥ कहे नारीने ए पूत । पुण्य जोग पाइया हो ॥ सु० ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ माता कही लाग्यो पांय । सुता रिणने तदा हो ॥ सु० ॥ सुता० ॥ चिरंजीवो दी आसीस । मस्तककर ठवी यदा ॥ होसु || मस्तक || जिमायो सुअन्न । भोजन निपावइ हो ॥ सु ॥ भोज | उत्तम वस्त्र भूषण । तस पहराबह ॥ होसु ॥ तस ॥ एकांत बैठा सुतार | पूछे मदन भणी हो ॥ ॥ पूछे | पडियो जलधार । उत्पति कहे तुज तणी हो ॥ सु ॥ उ ॥ मदन कहे हूं वाणिक । कर्म उदय आविया हो ॥ सु ॥ कर्म ॥ कर्याकठियाराका काम । काष्ट | शिर वाहिया हो ॥ सु ॥ काष्ट ॥ ५ ॥ एकदा भारी काज । गयो कतार में हो ॥ सु ॥ गयो ॥ वृष्टि अणचिंती धाय । पड्यो जलधार में हो ॥ सु ॥ पड्यो || लाग्यो इंडो हाथ । तिरी इहां आवियो हो ॥ सु ॥ तिरी ॥ आप कियो उपकार । सुख सह पावियो हो ॥ सु ॥ सुख ॥ ६ ॥ सुतार सुणी हर्षाय । कहे सुण नंदना हो ॥ सु ॥ कहे ॥ ए छे तुज घर धन । जाणे मति फंदना हो ॥ सु ॥ जाणे ॥ निज इच्छा जिम तूं । इहां सदा रहियेहो ॥ सु ॥ | इहां ॥ सीखो हमारो कर्म । चहिये सो वणाइये ॥ होसु ॥ चाही || ७ || आनंद माहे मदन ।
खण्ड १