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काज ॥ नर देह नारायण समी । सुख दीजे घटणाज ॥ त्याग ॥ १५॥ खान पान सुख
भोग में । नहीं पाप लगार ॥ आपणो शास्त्र इम कहे । छोड फंद निसार ॥ त्याग ॥१६॥ * सूतार कहे भूदेवजी । न कहो कूडो वचन ॥ जो शास्त्र इम ऊच्चरे । तो किम हुवा वामन ॥ | त्याग ॥ १७॥ भक्षाभक्ष गिणवा तणो । रह्यो नहीं काम ॥ माता पत्नी एकसी । विष अमृत तमाम ॥ त्याग ॥ १८ ॥ जोसरज्या नर कारणे । वे स्वादी केम ॥ स्वर्ग नर्क कुण|R जावसी। झूटा शास्त्र नेम ॥ त्याग ॥ १९ ॥ जैन विना मत फैनसो। निग्रन्थ विन पाखंड || दया विवेके धर्मछे । ए मुज श्रधा अखंड ॥ त्याग ॥ २०॥ सुणी विबुध चुपको रह्यो।
पाम्यों चित चमत्कार ॥ ढाल सात अमोलख कही । धन्य २ पद्म सुतार ॥ त्याग ॥ २१ ॥ १आकाश ॥ दोहा ॥ नभ में घुघरी घम घमी । दशो दिश हुयो प्रकाश ॥ देव आइ चरणे नम्यो।
करे नम्र अरदास ॥ १ ॥ अज्ञ अधर्मी अजाण में । आयो डिगावा काम ॥ जेहथी उपजीविका । तेमा धरी द्रढ हाम ॥२॥ तीन दिवस कष्ट थां समो। पण न चढायो मन ॥ | उत्तर पण योगज दियो । थोडेही ज्ञान रमन ॥ ३॥ क्षमो अपराध कृपा करी । मांगो जे | तुम चहाय ।। धन्य जनक जननी जेह । तुम सरीखा जन्म्याय ॥ ४॥ पद्म प्रेक्षी अचंभियो । प्रत्यक्ष धर्म के फल ॥ रंगाणो धर्म रग रगे। भइ श्रद्धा निश्चल ॥५॥ ढाल ८ मी॥ राम आया जमाना खोरा ॥ यह ॥ भाइ धर्म सदा सुख कारी। पूरे इच्छा पाले ज्यांरीरे॥भा॥