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________________ भी आया बनते जोवता । हृदय जगनाथ ॥ त्याग ॥२॥ निर्जीव दारुक पेखता। भमता हुई। खण्ड १ श्याम ॥ अमेर हाथ आवा देनहीं । हार्या तब हाम ॥ त्याग ॥३॥ तिमहीं आया सांजका। पोताने घेर ॥ भारज्या औलंभोदियो । किस्यो फंद भर्यो हेर ॥ त्याग ॥४॥ दुःख किहां || २ लक्कड लग भोगबूं । काटी दो दिन भूख ॥ अवतो रहवावे नहीं ॥ गयो तन सहू सूख ॥ त्याग ||R ५॥ काल तो जरूर लावजो । जे जातां लगे हाथ ॥ नहीं तो घर आजो मती । सौ वातां में | एक बात ॥ त्याग ॥ ६॥ पद्मतो चुपको सुइ रह्यो । दूजे दिन आयो वन । फिरतो २/ में थाकियो । बैव्यो उत्तरे वदन ॥ त्याग ॥ ७॥ चिंते घर जाइ स्यूं करूं । नारी करसी क्लेश , | सूतो तिहाइ तरु तले । चित जपतो जिनेश ॥ त्याग ॥८॥ त्रिदश जोइ द्रढता। विप्र रूप बणाय ॥ अती बृद्ध त्वचा लटकती । कर काठी सहाय ॥ त्याग ॥९॥ लांबी धोती पहरबा । ननोइ गल माल ।। पांव खडावां खटकती । शिव तिलक छे भाल ॥ त्याग॥१०॥ * शंकर नाम उच्चार तो। आयो पद्ममे पास ॥ आशीर्वाद देइ कहे । किम वैव्यो उदास त्याग॥ | ११॥ पद्म कहे मैं ली आखडी । जैन मुनीवर पास ॥ हरीयो बृक्ष छेदूं नहीं। तीन दिन हुवा तास ॥त्याग॥१२॥ सूखो लक्कड न मिल्यो । क्षुधा पीडे छे मुज ॥ तिण थी तन दुर्बल भयो । कह्यो वीतक तुज ॥ त्याग ॥१३॥ विप्र कहे मुख बन्धिया। फरेबी घणा होय ॥दुःखी करे संसार ने ॥ जगको बीज खोय ॥ त्याग ॥१४॥ भोगोपभोगनी वस्तु जे। सरजी मानव
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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