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श्री जिन अजित नमु जय कारी ॥ यह ॥ धन्य २ मदन उच्चरे सहूजन | कीधो अहूंतो कामजी || स्वजन मिल्या सहू हर्षाया | पूरी हुई छे हाम जी ॥ धन्य ॥१॥ कुँवरी हुलसित आतात ढिंग । प्रेमे प्रणमें पायजी || स्मरित दुःख नेणे नीर वर्षे । विरहहियो दर्शायजी ॥ धन्य ॥ २ ॥ प्रेमोत्सुक नृप लीनी खोला में । पुचकारी घर | प्रेम जी ! आज सफल दिन बाइ हम छे । तुज दीठां पाया क्षेमजी ॥ धन्य ॥ ३ ॥ रूपवती कहे आप विरहथी । हूं तड फडती दिन रेन जी । मोटो उपकार जवैरीको छे । | मिलाया मुज़ ने सेण जी ॥ धन्य ॥ ४ ॥ मुज काजे यां दुःख सह्यो घणो । कह सी सहू भद्रसेणजी। अब जाऊं माताजी पासे। दरसणे तरसे नेणजी ॥ धन्य ॥ ५ ॥ उठी तत्क्षण आइ जननी कने । प्रेमे लागी पांयजी । उठाइली खोलामाहीं । प्रेमे हिये चिपकायजी ॥ धन्य ॥ ६ ॥ नेणा नीर न्हाखती बोले । करी अचंभो मात जी । थोडामांसरे माह वाह । सूखयो सहु गातजी ॥ धन्य ॥ ७ ॥ किहां किमगह रही किहां | किम । सह्यो दीसे घणो दुःख जी ॥ कुँवरी कहे माजी मुज दुःखडा । किम कहवावे | मुखजी ॥ धन्य ॥ ८ ॥ उडा मंत्रसे लेगयो जोगी । राखी महागिरी मांय जी ॥ अहोनिश एकली झुरती रहती ॥ ते पापी नित्य सतायजी ॥ धन्य ॥ ९ ॥ धन्य २ जवैरी जी तांइ । मुज काज भ्रम्या प्रदेशजी || महा कष्ट सही सुखी करी मुज ॥ हूं फेडी न सकूं रेशजी