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________________ १ देव गया वनमें न्हाश हो | म || ला ॥ २७ ॥ मैं लारो तस छोडियो । इहां नित्य आयूं एम 'हो | म ॥ आवण कोइ पावे नहीं । कह्यो वृतांत भयो जेम हो | म ॥ ला ॥ २८ ॥ न्याय द्रष्टी थी सोचिये । किण कियो अन्याय हो । म ॥ पंचम खन्ड ढाल आठमी । ऋषि अमोलख गाय हो | म ॥ ला ॥ २९ ॥ * ॥ दोहा ॥ सीस हलाइ मदन कहे । नृपनो खरो अन्याय ॥ तृष्णातुर होइ करी । बदल्यो कही मुख वाय ॥ १ ॥ विना गुणे संतापियो | न्याइ तुम परिवार || शिक्षा तेहनी तुमदीवी । हिवे लेवो मनवार ॥ २ ॥ कीधा का फळ भोगव्या । नहीं तुम्हारो दोष ॥ तुम सामर्थ्य छो सह विधे । स्युं कीडी पर रोष ॥ ३ ॥ क्षमा बडेको होत है । हलकेको उत्पात । बडा बडाइ न तजो । जोग मिले कम जात ॥ ४ ॥ अर्ज म्हारी अवधारने । निवारो सह रोष ॥ सुखी करो सह जीवने । घर धन दे संतोष ॥ * ॥ ५ ॥ ढाल ९ मी ॥ इण वाने केशर उडरही ॥ यह ॥ जोगी सुणी सह सुरकथा || जाण्यो ए सरल स्वभावी जीवके ॥ इम सुधारो कीजिये || तस मन वैर निवारवा । दे उपदेश तजावा रीवके ॥ इम सुधारो कीजिये ॥ १ ॥ अहो सुणो अमर हम तणी । होणहार टाले नहीं कोयके ॥ इम ॥ सेठपुत्र सुरी वस पडे । हार देवे नृप भेट ते होयके ॥ इ ॥ २ ॥ ते टूढे तुमही गृहो ॥ लालची राज बचन वियोग के ! इ ॥ ३ ॥ तिणथी अनर्थ निपजे । हो तबता लेवो तुम
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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