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जङ्गलमें जाते हैं । वहांसे काष्टका बोझा शिरपर रखकर जिससमय शहरके तरफ लौटते हैं उससमय अकस्मात् वर्षा पड़ने लगती है. जिससेकि चारोंही समीपमें रही हुई एकनदीके किनारे बैठ जाते हैं । और दुःखितमनकी मलीनताको दूर करनेवाले ऐसे अपने २ हृदयोद्गारों को परस्पर सुनाते हुये मदन कहता है कि जहांतक राज्यसहित राजपुत्रियों को मैं प्राप्त न करलूंगा वहांतक मातापिताओंकी स्नेहभरीदृष्टिसे पृथक् रहूंगा । इतना कहही रहाथाकि वायुके थोडेसे आघातसे वह नदीमें गिरजाता है; दैवानुयोगसे नदी में बहते हुए एककाष्टकेसहारे नगरके नजदीक एक सुतार उसे निकालकर अपने घर लेजाता है। कुछदिन वहां विश्रान्ति ले बही मदन सुतारके बनायेहुए गरुडयन्त्रपै चढकर हवा खानेके बहाने आकाशमार्गसे एक शहर में पहुंचता है; वहांपर अपनी बुध्दिमानीसे वहांकी राजपुत्री के अत्याग्रहसे रात्रिमें उसकेसाथ गन्धर्व विवाहकर अन्यस्थानपर वापिस आजाता है । प्रातःकाल राजाके आदेशको सुन स्वयं गिरफ्तार होनेकेबाद कोतवाल उस अपराधमें उसे शूलीपर चढ़ाने के लिये लेजाता है, मार्गमें मुनिराज के सदुपदेशसे कोतवाल मदनको समझाबुझाकर छोड़देता है । नगरसे निकलकर फिर उसी सुतारके यहां पहुंचजाता है, जिस शहर में सुतारकेघर मदन रहा करता था उसी शहरमें एक पाठशाला थी. जिसमेंकि राजपुत्री और मन्त्रीपुत्र पढ़ाकरते थे । एकदिन मदन इधर उधर घूमता हुवा उस शाला के नजदीक से निकलता है, वहांपर अपनी स्वार्थपूर्ति केचिन्ह देखकर मूर्ख जैसा वेषभूषा बना उस शालमें