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पढ़नेके बहाने आने जाने लगता है, अन्तिमपरिणाममें मन्त्रीपुत्रसे प्रेम करनेवाली उस राजपुत्रीका पत्रवाहक बन अपनी चातुर्यतासे अर्धरात्रिकेसमय धनसे परिपूर्ण उस राजकन्याकेसाथ घुड़सवार हो दूसरे देशमें चलाजाता है । वहां पहुंचनेकेबाद साथमें सचिवपुत्र न देख मूर्खवेषमें उस मदनको देखकर राजपुत्री मनमें अतिदुःखित होजाती है, किन्तु मदन दासी आदि सम्पूर्ण सुविधायें उसकेलिये करदेता है जिससेकि वह जिन्दगीके दुःखमयदिन एकान्त स्थानमें बिताने लगती है । इधर मदन मूर्खकेभेषको बदलकर बाजारमें जवाहिरातकी दुकान लगाता है, धीरे २ परिचय बढ़नेकेबाद एकसमय मुक्ताफलकी परीक्षाकेलिये आमन्त्रित जौहरियोंकेसाथ यहभी राजदरबारमें पहुंचता है. सभाके अन्दर जवाहरातकी परीक्षामें सबसे अग्रगण्य होनेपर राजा उसे अपना मुख्य अमात्य बनालेता है। उस स्थानका कुछदिन अनुभवकर अकस्मात् नगरकेउपवनसे गुमहुई राजपुत्रीके ढूंडनेकेलिये बीड़ा उठाकर पुनः राजपुत्रीसे मा बापके मिलनेका बहाना ले उस शहरसे प्रस्थान करदेता है । वहांसे निकल मार्गमें वणिग्भेषको बदल जोगीका बेष बना इधर उधर फिरता हुवा जङ्गलमें तालाबके किनारे पानीका घड़ा भरते हुए एक जोगीको देखता है, समीपमें पहुंचकर जोगीके इन्कार करतेहुयेमी अत्याग्रहसे शिष्य बननेके बहाने पीछे २ चल उसके स्थानपर पहुंचजाता है। कपटनिद्रासे सोयाहुवा वही मदन रात्रिकेसमय गुफामेंसे निकलतीहुई उस राजपुत्रीको देखता है, पुनः उसी गुफामें राजपुत्रीके बन्द होनेपर नजदीकमें रहेहुये तोतेकेद्वारा सम्पूर्ण स्थिति सुन, उसके छुड़ानेकेलिये निर्जन बनमें नृत्य करतीहुई खेचरीसे