SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म.श्रे. ७५ ॥ ज्ञानी धरमी । ए वैश्या जात छेरे ॥ बु ॥ १३ ॥ इणरो धन अपने किस्या कामको । जरा विचारो ठर ॥ बु ॥ १४ ॥ विप्र कहे सत्य उपदेश श्वामी || पण इणरी नहीं वैर ॥ १५ || ए व्यवहार संसारको श्वामी । म्हारे निभावो घेर ॥ बु ॥ १६ ॥ मदन कहे एक | म्हारी मानो। कहूं उभय सुखदा हेर ॥ बु ॥ १७ ॥ तुम आया मित्र धन लेवाने | तेही लीजे इण वेर ॥ बु ॥ १८ ॥ तुमारो और गुणचन्दको । लो हिवे माल अँबेर ॥ बु ॥ १९ ॥ इणने अब प्रतिज्ञा करावो । न खेले जूवा फेर ॥ बु ॥ २० ॥ वहबाइतो इण से थासी । तुम जीत्या जग जाहेर || बु ॥ २१ ॥ दोनों लोके संतोष सुखदाइ । कहूं पुकारी ढेर ॥ बु ॥ २२ ॥ इम बहू परे विप्र समजायो । मत होवो बकरी पे शेर ॥ बु ॥ २३ ॥ विप्र कहे मानू आप हुकममें । देवावो तेही नहीं देर || बु ॥ २४ ॥ मदन वैश्यासे कहे शीघ्र देवो । जो तूं | इच्छे खेर || || २५ || नहीं तो फिर फजीती पूरी । वैश्या ए मानी ते वेर ॥ बु ॥ २६ ॥ जोह चोपडा हिंसाब प्रमाणे । खरच ही तिण में उमेर ॥ बु ॥ २७ ॥ द्रव्य दिलायो सद्दकी साक्षी | माफी मंगाइ फेर ॥ बु ॥ २८ ॥ वैश्याको निज घर पहोंचाइ । वहा २ करे सहू टेर ॥ बु ॥ २९ ॥ विप्र कहे कर जोडी मदन से । एक चिंता मिटी आप मेहर || बु || ३० ॥ हिवे ढूंदू श्रीपतिनी पुत्री । मदन कहे सुणो फेर ॥ बु ॥ ३१ ॥ इहांथी तुम श्रीपुर जावो । राणीजीके घेर || बु || ३२ || कह जो मास छे धैर्य धारो । ब्रह्मचारी यहां आसी नयेरे ॥ बु ॥ ** खंड ४ १ खराब ७५
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy