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खण्ड ३
म. श्रे. ४८
चारले तपले । चार मजीरे कर धरी । चार परीने पेहरा- घाघरा । घेरदार बहु झलके , जरी। ओड पितीम्बर अतिही सुन्दर । रेशमी बहुरंग भरी। बुलंद अवाजी पाय घुघरी।
बान्धी बरोबर सोले खडी ॥ होय पुण्य पूर्वले जिनके । जब जनको मिले ऐसी घडी २॥ आं ॥१॥ धप मप २ वाजे मृदंग । थाप लगे है सम्मत से || सण २ करे सारंगी मैं बोले । तान मिलाइ रम्मतसे ॥ टन्नक २ बाजे मजीरे। हिला सीसको जम्मतसे ॥ चारोंही श्रीस्वर मिलाह । राग अलापी गम्मतसे ॥ प्रथम तो धुपद उच्चारी । ध्वनी
य गगन चडी॥ होय ॥२॥ तीन तान और सप्तश्वरसे । राग रागणी छत्तीसों॥ ६ योग्य वक्त सिर रीत रायसे । मिला ध्वनी उच्चारी सो घननन २ घाले घुमरी । ठमक २
करती चाले ॥ लटक २ कर लटका तोडे । करी कटाक्षने निहाले ॥ छमक २ कर विछि | | या छमके । खणणण कर खडके चूडी ॥ हो ॥ ३ ॥ करी नाटक बतीस प्रकारे । पूरी सहू |
मनकीजी रली ॥ संत तंत परितंत हुई तब । आपसमें मश्करी चली ॥ हार बैठी सब &| धरणी ऊपर । पसीने के उतरे रेले ॥सरत खल्ली गुलाब कुसमज्यं । मुल्के नूर नेणा खेले॥ | वायु उडावे शिखा पृष्टपे । जाणे नागन खेले पडी ॥ हो ॥ ४ ॥ कहे चलो पुष्करणी
अन्दर । थाक समावां करां न्हावण ॥ नृत्य सामग्री मूकी त्यांही । कपडे बदले तन छावण | | ॥ आइ वडी वावडी पाजपर । उतार साडी तिहां रखे । सहू पडी निर्मळ नीरमें । जल