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खण्ड
* सौ झुरतां जाय ॥ होमन ॥ तेहथी मुजने सीखदो ॥ सुणो ॥ जाइ सोवू निज ठाय ॥ म. श्रे.
होमन ॥१५॥ उपवयमें तुम आविया ॥ सुणो ॥ पिता नहीं परणाय ॥ होमन ॥ में तिणथी इच्छो मुज भणी ॥ सुणो ॥ घणा उतावला थाय ॥ होमन ॥ १६ ॥ उतावला 1 ते वावला ॥ सुणो॥ धीरा गंभीरा हो। होमन ॥ तिण कारण समता धरी ॥ सणो॥
कुल घर लज्जा जोय हो । मन ॥ १७॥ राजाजी गुणवंतछे ॥ सुणो ॥ परणासी थोडे RK काल ॥ होमन ॥ जोगी जोडी मिलावसी ॥ सुणो ॥ अवसर जोवो हाल ॥ होमन ॥ | १८॥ तुम हमनी ओलख नहीं ॥ सुणो ॥ बली नहीं संबन्ध ॥ होमन ॥ गुप्त कार्य
करता थकां ॥ सुणो ॥ हृदय होवे अन्ध ॥ होमन ॥ १९ ॥ ९आयो तुम संकेत थी॥ IFE सुणो॥ एदीधी हित सीख ॥ होमन ॥ रखे माठो लागे मन विषे ॥ सुणो ॥ न धरजो
कोई तीख ॥ होमन ॥ २० ॥ शीघ्र जवाब हिवे दीजिये ॥ सुणो ॥ जाऊं निज ठिकाण || होमन ॥ अमोल कही ढाल बारमी ॥ सुणो ॥ देखो मदन गुण ज्ञान ॥ होमन ॥ २१॥ ॥ दोहा ॥ रंभा सुणो बचनए । आश्चर्य पाइ अपार ॥ उभय तरुण एकांतमें ॥al मन राख्यो इण वार ॥ १॥ सरल संतोषी सीलवंत ॥ इण सम अवर न नर ॥ चिंतामणी मुज कर चड्यो । कोई पुण्य अनुसर ॥२॥ रूप अनोपम काम सम । | अमृत वयण उचार ॥ सुसंस्थान संथित तन । बुद्धिप्रबल गुण धार ॥३॥ जाती
SVIRYANAMA