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________________ खण्ड २ * हेकेसा० ॥ नीचे पडे रडकाय ॥ केच ॥१४॥ ते झेले कदा सीपडी ॥ हेकेसा ॥ तेहनो में | मोती थाय ॥ पक्षी पाखनी रज ते ॥ हेकेसा ॥ मोती पडमें रहाय ॥ केच ॥ १५ ॥ इत्यादि संजोग थी॥ हेकेसा॥ इणमें रहगह रत्त ।। हे ए उत्तम जातीनो ॥ हेकेसा॥ पण संग बिगड्यो पेत ॥ केच ॥ १६ ॥ विद्याविन ए शोभतो ॥ हेकेसा॥ बींया प्रगट्या गुण ।। गुरु गमे जे विद्या गृह ॥ हेकेसा ॥ तेहीज जगमें निपुण ॥ केच ॥ १७ ॥ इण कारण इण मोतीने ॥ हेकेसा०॥ मैं निकमो कह्यो नाथ ॥ रूप देखी मैं राचिये ॥ हेकेसा ॥ परखी जे गुणजात ॥ केच ॥ १८ ॥ क्षमा करीयो सहू जेष्ट जन ॥ हेकेसा॥ लोपी आपकी वाण ॥ सहू कहे धन्य छे तुम भणी ॥ हेकेसा० ॥ कीधी खरी पहछान ॥ के ॥ १९ ॥ नानी वय यह चातुरी ॥ हेकेसा॥ निजकुलमें अवलोक ॥ खुशी हुवा हम 5 अति घणा ॥ हेकेसा ॥ बधसी आगल जोख ॥ केच ॥ २० ॥ मदन दीस बुद्धि करीd 5 हेकेसा० ॥ सहूनें वंशमें कीध ॥ पीजे खंड ढाल आठमी ॥ हेकेसा० ॥ कही अमोल भलीबिघ । केच ॥ २१ ॥ दोहा ॥ प्रमुदित नरवर भणे । अहो श्रेष्टी सिरदार ॥ एक तणी परीक्षा करी ॥ दूजानी करो उचार ॥ १॥ अमूल्य ए किण कारणे । इसो| भएमा सी गुण ॥ ते हिवे शीघ्र प्रकाशिये ॥ अहो जवैरी निपुण ॥२॥ मदन कहे राजा भणी । दूं यश गुण बताय ॥ हिवणा तो अवसर नहीं । च संजोग जब थाय
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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