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१ पुत्री
आया । गुणसुन्दरी मेहल पास । ते पण ऊभी थी गोख में कांइ । देखण वरने हुल्लास P॥ आं॥६॥ तिहाइ आइ उभा रह्या जी । करता सहजन खेल ॥ मदन गुणसुन्दरी
देखने जी । मुखडो लीनो फेर ॥ आ॥७॥ चूप धरी जोवे सुंदरी । लागे सेंदीसी सूर्त एह । इम हियापे निश्चय कियो । एतो मूर्ख नहीं संदेह ॥ आ ॥ ८॥ अहारूप दिव्य | एहनो । बैठ्यो किस्यो हुंशियार ॥ अहा मोहनी मूरती ऐहनी । अहा सोभा सिणगार |॥ ७ ॥ ९ ॥ साची ए परणे सही जी । इहां राय की धीय । तो किम मूर्ख जाणिये । अती आश्चर्य उपजे जीय ॥ आ ॥१०॥ देखो जोवे नहीं मुज भणी जी । बैठो मुख फेराय || आज कपट मैं जाणियो । मुज आगल ढोंग बणाय ॥ आ॥ ११ ॥ जब आवे मुज सामने एतब वणे कंगाल ॥ गेली बातां षणायने । मजने उपजावे जंजाल ॥ आ ॥ १२ ॥ आप षण बैठा राजवीरे । मुज न प्रकाश्यो भेद ॥ कहे भाडे परणाविया । हाहा देखो दगो ए खेद ॥ ७॥ १३ ॥ हूंतो जाणती मूर्यो ए । एतो गुणभंडार ॥ रूप कलागुण सहू थी अधिका । हूं चूकी निराधार ॥ आ ॥ १४ ॥ रच्यो परपंच इण ठेटथी । मुज लायो इहां भरमाय ॥ बैठाह छे केदमा
मैं किस्यौ कियो अन्याय ॥ ७ ॥ १६ ॥ आज पात करी मुज कने जी ॥ सेठको पुत्र मदन ॥रायसूता लायो इंढने । ततो सत्य इणीरो कथन ॥ आं ॥ १७॥ कुटम्ब |