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खण्ड ४
बचन नहीं लोचूंगा थारो । शसि चडाइ वचन । चल्यो ते करवा उपाइ ॥ म॥६॥
रही तस्करके पास । सीखियो चोरी करण ज्यारे ॥ हुवो कलाप्रवीन । के शस्त्र लीधा प्रसंग त्यारे ॥ राजमहल में आयो जोया पेहरायत द्वारे । कला करी पेठो ते अन्दर । हिम्मत
मन धारे ॥ निद्रा वस नृप नारी देखी ते सूती सेज मांह ॥ म ॥ ७॥ ग्रीवामें पड्यो हार । के लेवण मति तब उपाइ ॥ शस्त्रे तोडे डोरी । राणी जाग्रत तब थाह ॥ देखी तस्कर पास। अतिगइ मनमें घबराह ॥ दौडो २ चोर । किलकारी जोरसे लगाइ । सुणी राणीकी हाक के । सुभट आया तब धाइ ॥ म ॥ ८॥ गुणचन्द गयो घबराय । बचण उपाय न देखाइ । | पख्यो राणीके चरण । रोवतो कहे सुणो मांह ॥ अब आपको सरण । करी मैं पूरी अन्याइ ।। | अहो पृथवीपाल । उगारो मेरी दया लाइ ॥ इम सुण राणी वयण । अचंभो मनमें अति | पाह॥म ॥९॥ चोर तणा नहीं चेन । षचन पण बोले ए मीठा ॥ कोमल अंग सरंग। भोल पण अंगमें बहु दीठा ॥ पूछे कहे तूं सच्च । इहां तूं आयो किम धीठा ॥ अब करे | नरमाइ । कर्म ते कर्या पहली चीठा ॥ कर जोडी कहे तेहा दया कर छोडावो मां ॥
म ॥ १० ॥ चंपानगरी कमल सेठको । बाजूं हूं बैटो । उप्रा जणने द्रव्य । हटकर विदेश मा पेठो ॥ रह्यो आपने शेहर । वैश्या फंद रह्यो सेंठो । लूट लियो सब द्रव्य । कर्म दुःस्व मुज हृदय पेठो ॥ न मानी मैं सीख । जे दीधी तातजी म्हराइ ॥म ॥ ११ ॥