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दीसे रूप विक्राल ॥ कायर जो धस्की मरे । आयो जाणे सागे कलिकाल ॥ भ ॥ १२॥ नगर सन्मुख चल आवतो जी ॥ अंगज ओलख्यो तेह ॥ सत्कार करवा तत्क्षणे ।। | उठ्या निर्भय सस्नेह ॥ भ ॥ १४ ॥ साहसघर सन्मुख चल्या । कियो लुली २ प्रणाम | ॥ मामाजी छो मुखमां । इम बोल्यो हर्षमें ताम ॥ भ ॥ १५॥ उम्मेद मुज हूंती |
घणी जी । दर्शन करवा आप ॥ आज भलो दिन उगियो । मुज भइ छे खुशी अमाप | भ ॥ १६ ॥ इम कही प्रेमे कर ग्रह्यो । यक्ष जोवे दृष्टि पसार ॥ ए नरके कोई देवता । इणने डर नहीं आवे लगार ॥भ ॥ १७ ॥ मुजने जोइ इन्द्र डगे । पण ए नहीं बगियो । केम ॥ कोध न जागे माहेरी । उलटो जागे छे प्रेम ॥ भ ॥ १८ ॥ पूंछे भाइ तूं | कोण छ । लागे किण दिनरो भाणेज ॥ किण कारण कर झालियो । किम करे छ। एतलो हेज ॥ भ ॥ १९ ॥ श्वामी; छं मानवी । मुज मात पतिवृता होय ॥ सहू | बंधवछे तेहना । इम मामाजी आप छो मोय ॥ भ ॥ २०॥ बुद्धि बचन इम सांभली । यक्ष तुष्टयो अति हर्षाय ॥ पहले मोरछे जय हुई । ढाल चौथी अमोलख गाय ॥भ || २१॥ ॥ दोहा ॥ पूछे यक्ष तुम कौन हो । एकला के कोइ लार ॥ अंगज कहे हम तीन छां । रह्या इण पूरने मझार ॥ १॥ बडा हमारे शिरगुरु । विद्यागुण भन्डार ॥ दूजा गुरुभाइ बडा । मदन नाम जयकार ॥२॥ प्रशंस्या सुण आपकी । आया मिलवा काज