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________________ १ सुखावे में हर्षाया। कहे महारे साथे चालिये ॥ हम विदेशी फिरां बहूला । देश विदेश निहाली ए में खण्ड ६ K॥ १० ॥ तिण साथे हूं, चाली खुशी हुइ ॥ सारथ पतिमुज, राखे मुख मइ ॥ चाल ॥ राखे मुख में रूपे रीजी। एकांते एकदा कहे ॥ विरह दुःख क्यों रहे व्याकुल । कोमल | तनने क्यों देहे ॥ करूं पत्नी माहेरी । खा माल तन सज सुखे रहो ॥ सुणी कंपी आत्मा, किम कीजिये एहथी द्रोहो ॥ ११ ॥ काम अन्ध ए, मानसी नहीं कयो ॥ रखे बलत्कारे' भंगे बृत गह्यो । चाल ॥ गृह्यो वृतज भंगे तेहथी । मरण श्रेय छे मूज भणी ॥ इम चिंती मिशामें निकली । तब गृही तस्कार दुःख अणी ॥ लेगया झाडने पहाड में। में जोइ ने तब थर हरी ॥ बचीखाड थी पडी कूवे । किसी कीजे इहां चरी ॥ १२ ॥ जातां पल्लीये, नारी तस लडी॥ किणने लायोरे, कहाड तूं इण घडी ॥ चाल ॥ इण घडी इण ने 5 काहाड बाहिर । नहीं तो मरूं कूवे पडी ॥ इम तुणी ते ले चल्यो मुज । क्रोधनेवश बड | में बड़ी ॥ आवियो इण ग्राममें । मुज सिरपे खंड पुलो धरी ॥ मध्य वजारे नर वृदे । २घांसका R बेंचवा उभी करी ॥ १३ ॥ इणही पुर रहे अनंगी वेसिया ॥ धन घरमें घणो रूप विशौषिया ॥ चाल ॥ वैशीयाते आइ बजारे । अवलोकन महारो करी ॥ तत्क्षण आ ढूंकडी । मोल पूछे हर्ष भरी सहश्र सोनैया कह्या तिण । ढगलो तिहां तबही कीया , प्रेमे बोलाइ मुज भणी । चलो अपणे घर बीया ॥ १४ ॥ मैं पूछो तस, कुल थारो कहो ॥
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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