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घणो उपकार जो ॥ सु ॥ १० ॥ मांडे बचन मनायो मुजने सेठजी । पकडी || E करने लेजाता . घर मांयजो ॥ तिण ही वेला याद हुइ मुज तुम तणी । सेठ
कह्यो हूं आस्यूं घरने जाय जो ॥ सु॥ ११ ॥ मालकणीकी आज्ञा लेइ आवस्यूं । सेठजी E छोडी दीधो महारो हाथजो । सोगन देवाडी छपाछो जावणो । करणी नही छे किण आगे, Pए बात जो ॥ सु ॥ १२॥ दौडी आयो सीधो हूं अब्बी इहां । शीघ्र जावणो आपो शीघ्र || हुकम जो ॥ बींदवणीने परणी लावू लाडी भणी । आज रातरा मजा देखांगा हम जो ॥
॥ १३ ॥ इम कही कूदे हंसे तेतो घणो । गुणसुन्दरीने हांसी आइ अपार जो मूख्यो । मारे झूठी गप्पा ए सह । कोइ तमाशो जोवण जावा विचार जो ॥ सु ॥ १४ ॥ लूण | लक्षण तो फूटी कोडी जित्ता नही । होवा जावे सेठसुतथी अधिक जो ॥ लपराया सीख्यो । ए इहां रेह करी । मुज भरमावा बात बणावे ठीक जो ॥ सु ॥ १५ ॥ कहे | मदन से जाथारी इछा जिहां । पण मत जाजे दूरो ग्रामने छोड जो । प्राते वेगो आजे | भोजनने इहां । झूर तणी मत लगावे अंग खोड जो ॥ सु॥ १६ ॥ सुणी मदन जी 5 खुशी हुवाने कूदता । उता मेडी नीचे तिणहीवार जो । चिंते कला तो जमी छे पूरी | महारी । अजु लगण नहीं ओलखे एह लगार जो ॥ सु ॥ १७॥ भेष बदलने आया चल | दूकान पे । लाग्या अपणे काम करणने मांय जो ॥ ढाल दूसरी कही ए छटा खंडकी ।