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१ इच्छित
॥ दोहा ॥ तीर्थकर सिद्ध साधूको । वारम्वार नमस्कार ॥ शांतीनाथ स्मरण करी । करूं तिउखन्ड उच्चार ॥१॥ मदन चरी छे मनहरी। अधिकाधिक संवाद ॥ ते सूणियों श्रोता गणों। छांडी सह विखवाद ॥ २ ॥ सत्य बड़ो संसारमें । आराधे पुण्यवंत ।। प्राणांते हटे नहीं। तस होवे सहू कंत ॥ ३ ॥ पुर पयठाण थी मदन जी । | करी सहू वंदोवस्त ॥ चाल्या आगे विदेशमें । पुण्य मुहूर्त प्रशस्त ॥ ४ ॥ आय ग्राम ने वाहिरे । सिद्ध करणने काज ॥ वाणिक वेश छिपाइयो । बण्या जोगी महाराज ॥५॥ भगवा वस्त्र पहरिया । गले रुद्राक्षकी माल ॥ आनन भभूती औपती । काप्या सिरका बाल ॥६॥ झोली घाली बगल में । करमें सौटी सहाय ॥ कम्बल खन्धे लटकती।
शिर शिव तिलक लगाय॥७॥ विन आडंबर शांत चित । फिरे भूमंडल मांय ॥ ग्रामा ३ जंगल | रण्य शिखरी गिरी । ढूंढता सहूजाय ॥ ८॥ साधू रूपथी तेहने । हटकी न सके कोय ॥ १ पहाडबात घणी हाथे लगे । आदर सह जगे होय ॥ ९॥ ढाल १ ली ॥ जंबूद्वीपरे भरत
| बवाणियेरे ॥ यह ॥ मदनकुँवरजी बुद्धि आगला जी ॥ कुँवरी सोदण काम ॥ जोगी रुहो पृथवी उल्लांघता जी। रहता शुभ जोह ठाम ॥ मदन ॥१॥ बहुपुर वह स्थान | चौकश घणी करेजी । किहांह पतो नहीं पाय ॥ तो पण साहस रति नहीं खन्डियो जी॥
आगे आगेजी जाय ॥ म ॥ २ ॥ आगल जातां ते मार्ग भूलिया जी । पड्या
२ मुखपर
५ गुफा