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खण्ड
कुँवरीने न्हवाइ । स्वच्छ वस्त्र पहराइ ॥ कहे अब किंचित डरमत राखो । जोगीको चाले न कांइ ॥ म ॥ १७ ॥ दोंनोंको करग्रही मदनजी । विद्या मनमें ध्याइ ॥ उड आया
अंतरिक्ष विमाणे ॥ सुखथी तिहूं बैठाइ ॥म ॥ १८॥ विद्या बले विमाण चलायो । व वायू वेग ते चाल्याइ ॥ तीनीने मन आनंद घणेरो । आज सहू फंद सूट्याइ ॥म ॥
१९ ॥ उपकार दोनों माने मदनको । जीवित यां दीघाइ ॥ निज २ वीती बात प्रकाशवा । इच्छा उभयकी थाइ ॥ म ॥ २० ॥ जित्ते जे जे होवे रचना । ते सुणजो चित्तलाइ ॥ ढाल तेरमी पंचम खन्डकी । ऋषि अमोलख गाइ ॥ मदन ॥ २१ ॥ दोहा ॥ लारे जोगी आइयो
गुफाते खल्ली जोय ॥ आश्चर्य पा शंकावियो। तुर्त मांय गयोसोय ॥ १ ॥ राजकन्या | दीठी नहीं । सूबटो नहीं दिखाय ॥ इत उत जोया घणा ॥ घणो गयो घबराय ॥ २॥ मुज सिरपर कुण जन्मियो । जेणे कीधा ए कर्म ॥ मुज विद्या फोकट करी । न लायो कुछ शर्म |
| ॥ ३ ॥ जोम उतारूं तेहनो । देखाडी करामात ॥ तो चेलो सग्दुरु तणो । नहीं तो लाजे || १देखा
जात ॥ ४ ॥ तत्क्षण उडियो गगन में चारं कानी जोय ॥ रवी किरणने सारिखो । जातो विमाण अवलोय ॥५॥ ॥ ढाल १४ मी ॥ कांइरे गुमान करे रसिया ॥ यह ॥ कांइरे में गुमान करे गेला ॥ ७ ॥ हारे गर्भ किणारो पारन पडियो । जिण कीधो तिणने आह नडीयो॥ कांइ ॥१॥ जोइ विमाण क्रोधे धम धमीयों । इण दुष्टे हो म्हारो गमीयो॥
YASHRISHAINISTRATIKHISMISHRA