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१ राजा
काल हो | म ॥ भव्य ॥ १४ ॥ हम सह हमणा तिहां रहां । सही शीत तापादि दुःख हो | म ॥ गया दिन संभारता । कब मिलसी ते सुख हो ॥ म ॥ भ्रव्य ॥ १५ ॥ एकदा नैमित्तिक आविया । अष्टअंगका जाण हो ॥ म ॥ देखी सह जन हर्षिया । जाण्यो सुख मंडाण हो | म ॥ भव्य ॥ १६ ॥ राजादिक वृद्धजन मिली । दियो घणो सत्कार हो | म ॥ ऊंच आसण बेसाविया ॥ पूंछे करी नमस्कार हो | म ॥ भव्य ॥ ॥ १७ ॥ कृपाकरी फरमाविये । ये हम संकट पूर हो ॥ म किणदिन किण संयोग थी । किणविध होसी दूर हो ॥ म ॥ भ ॥ १८ ॥ विबुद्ध कहे अहो नरपति | वय पंचमी बुद्धवार हो | म ॥ फाल्गुण पूरी मंडले । आनंदपुरने मझार हो ॥ म ॥ भ ॥ ॥ १९ ॥ पूर्वदिशीना द्वारथी । जोगी रूपने मांय हो ॥ म ॥ मदन नामे पुण्यात्मा । आसी पयदल चलाय हो | म ॥ भ ॥ २० ॥ ते वस करसी असुरने । नगरी देसी वसाय हो | म ॥ परणसी पुत्री तुम तणी । कनकावती जे कहवाय हो ॥ म ॥ म ॥ ॥ २१ ॥ इम कही नैमित्तिक गया ॥ हर्ष्या सह नर नार हो | म ॥ जावो तुम नगरी बिषे । आज आसी मदनेशहो | म ॥ भ ॥ २३ ॥ ताताज्ञाये आविया | मुज़ने | मेली इण ठाम हो ॥ म ॥ जोगी तणो रूप धारने । बान्धव गया आप साम हो ॥ म ॥ भ || २४ ॥ नैमित्तिकना कहेण थी । पैछाण्या हम आप हो ॥ म ॥ द्वादश डाल अम्रोल