Book Title: Madan Shreshthi Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Sukhlal Dagduram Vakhari
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॥ झेला ॥ सु० पूर्व प्रेम प्रभावे । सु० चारी राणी ते थावे । सु० दान थी संपदा पावे। मु० वली धर्म में मन रमावे | मि ॥ इम जाणी दीजो दान । करी सन्मान । तजी अभीमान | शुष्क ब्रतीरीजे ॥ तो मदन ॥६॥जे कीधा ते पाया। वणिक कल आया। राजा केवाया ॥ किंचित दुःख थी मुख अचिंत्यो पाया ॥ और भावे गुण भारी । प्रत संसारी। भइ तुम काया ॥ तेहथी तारण सामग्री कर तुम आया ॥ झे ॥ सु० ए ऋद्धि साथ नहीं जावे । सु० ए ऋद्धि न दुःख मिटावे । सु० दान मांही देवे ते पावे । सुण मोक्ष अर्थी ए छिटकावे ॥ मिल ॥ इम जाणी अहो प्राणी । संतोष करीजे ॥ तो मदन ॥७॥ अब छोडो ऋद्धि करो करणी । भव उद्धरणी । जिन जी फरमाइ । खांत दांत निरारंभ अणगार ज थाइ । ते मिटा देवे जन्म मरण । फिरी अवतर्ण । मोक्ष में जाइ ॥ ए सार जगतमें धारो सुखेच्छू भाइ ॥ झेला ॥ सु० ए गुरु उपदेश रसाल । सु० सुणी भवी जीव तत्काल । सुण साहवा धर्म करण उजमाल ।सुण भाइये हुह षोडशमी ढाल ॥ मिल ॥ए ऋषि वचन अमोल। हिया में तोल दान शुद्ध दीजे ॥ तो मदन ॥८॥ॐ ॥ दोहा ॥ इत्यादि दीदेशना। सुणी भव्य हर्षाय ॥ जाणी मदन पूर्व चरी । घणा जन विस्माय ॥ १॥ अचिंत्य महिमा दानकी। | थोडा में महालाभ || दाता भुक्ता सब मिल्या । भाव जिसा उत्साभ ॥ २॥ दान शील तप भावना । धर्म का चार प्रकार ॥ प्रथम पद इण कारणे । दियो दानने सार ॥ ३ ॥

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