Book Title: Madan Shreshthi Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Sukhlal Dagduram Vakhari

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Page 293
________________ म. १४१ 味 ॥ ३ ॥ साधु सतींनी साधता । यथायोग्य नित्य सेब || श्री जिन धर्म दीपावता । तल्लीन रही अहमेव ॥ ४ ॥ तन तप थी धन दान थी । लेखे लगावे जेह ॥ देखी करणी जिण तणी । वधियो धर्म अछेह || ५ || || ढाल १६ मी ॥ लावणी । एक नगर बणा गुलजार ॥ यह ॥ सुणलेणा दान का फल | होय वीमल । दान नित्य दीजे ॥ तो मदन कुँवर परे संपदा लीजे ॥ आं ॥ तिण अवसर भूमंड माय । फिरे मुनीराय । गुरु गुणधारी ॥ पंच महाव्रत समिति पांच पांच आचारी ॥ सील घरे नव बाड । तीन गुप्त आड । कषाय चौटारी ॥ पांचों इंन्द्रियसे विषय लेहर निवारी || झेला ॥ सुणो भाइ, छत्तीस गुण जहां पावे । सुणो भाइ, घणा मुनी साथ सोभावे । सुणो भाइ जे जैन धर्म दीपावे । सु० तिण अवसर अजुध्या आव || मिलत ॥ सुदर्शन ऋषिजी संत । इन्दू सोहंत । दर्श तस कीजे ॥ तो मदन ॥ १ ॥ बन पालक सज थाय । नृप सभा आय । दीनी बधाइ ॥ वदनजी सह परिवार | खबर यह पाइ ॥ सहू सजाइ कीन । मज्जन संग लीन । चले भाइ बाइ । यथा विधी मुनीराज आय वंद्याह ॥ झेल || सु० || आचार्य पंच ज्ञानधारी । सु० अवसर उचित उचारी । सुण० दान तणी महिमा भारी । सु० लोपात्र भेद विचारी ॥ मि० ॥ निश्चय मुक्त पहोंचाय । द्रये ऋद्धी पाय । पाप सहू छीजे ॥ तो मदन ॥ २ ॥ साकेतपुर शुभ ग्राम । सेठ गुण धाम । मणी भद्र रेवे ॥ चउ गुमास्तां संग धर्म ध्यान नित्य सेवे ॥ 1 खण्ड ७ १४१

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