Book Title: Madan Shreshthi Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Sukhlal Dagduram Vakhari

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Page 297
________________ १४३ में मदन ॥३॥ मदन कहे तुम ज्ञानी होइ । इसा वचन मुख मत बोलो ॥ जन्म सर्व श्रावक-* व्रत धरे । नहीं मुतीकी दो घडी तोलो ।। मुनी मार्ग शिवसुखकादाता । संसारमें चउगति | * जोलो ॥ मनुष्य भवेही संयम आवे । कुण खोवे वक्त अमोलो ॥ हूं तो लैस्यु संयम अब्बी में || ढील करूं नहीं लगारे ॥ मदन ॥४॥ तीनो भाइ कहे नरमाइ । विरह हमथी सह्यो नहीं #जावे ॥ जो आत्म उद्धार करोतो । म्हारे ही मन ते चावे ॥ मदन कहे यह भली विचारी में ६। प्रेमला तब दौडी आवे ॥ सह मिली एक मतो कर्यो थां । म्हाकी गती कैसी थावे ॥ हरगिज हम जावां नही देशा। महाके तुमही आधार । मदन ॥५॥ मदन कहे मोह में दिशाको छोडी । ज्ञान नजर करके जोयो ॥ किंचित पापे भह छो नारी । इन से हलकी | * मत होवो ॥ साचो प्रेम जो राख्यां चावो । तो मोहनिंद्रासे मत सोवो । अवसर पाइ ६ करो कमाइ । जिनसे भव भ्रमण खोवो । तुम कहणी थीई नहीं । तुम क्यों नहीं तिरो संसार ॥ मदन ॥ ६॥ संक्षेपे अति बौध बचन सुन । कहे हम भी साथे आसां ॥ जैसी प्रीत संसारे निभाइ। वैसी धर्म में निभासां ॥ इम सुणी कुवर पयंपे । सर्व एक मन तुम भइया ॥ तो आसरो हमने किनको । जो नहीं रहे तात मैया ॥ और सज्जन भी मोहवश होइ । नेणां आंशू नीतारे ॥ मदन ॥७॥ मदन कहे अहो मोहो गिल्याणी । में जरा विचार करो मन में ॥ आसरो दाता को नहीं जगमें । मतलब वसे सारा जनमें ॥

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